फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शहर के हो गए
रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही
दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही
रतजगों की फसल
काटने के लिए
बीज बेचैनी के बो गए
प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए
मौलश्री से हैं झरते नहीं फूल अब
गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो गए
राणा प्रताप सिंह
जैसलमेर (राजस्थान)
जब से हम शहर के हो गए
रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही
दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही
रतजगों की फसल
काटने के लिए
बीज बेचैनी के बो गए
प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए
मौलश्री से हैं झरते नहीं फूल अब
गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो गए
राणा प्रताप सिंह
जैसलमेर (राजस्थान)
BHAI HAME TO YEH RACHNA BAHUT ACHCHHI LAGI
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत के लिए राणा प्रताप सिंह जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत है राणा जी का। उन्हें बहुत बहुत बधाई।
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