चंपा फूला
उधर डाल पर
इधर हमारी देह सिहाई
रचा फागुनी हवा-धूप ने
रितु का अचरज
टेर सगुनपाखी की गूँजी
महका सूरज
नेह-पर्व की
चंपा पर बैठी पिडुकी
दे रही दुहाई
रात चाँदनी
जब चंपा को दुलराती है
नेह-छुवन के गीत
हवा सँग वह गाती है
नदिया तीरे
किसी नाव पर
कोई बजाता है शहनाई
आधी रातों
बिना देह का देवा आता
इच्छापूरन वृक्ष
रोज़ चंपा हो जाता
चंपा में तब
किसी अप्सरा की छवि
देती हमें दिखाई
-कुमार रवीन्द्र
हिसार
उधर डाल पर
इधर हमारी देह सिहाई
रचा फागुनी हवा-धूप ने
रितु का अचरज
टेर सगुनपाखी की गूँजी
महका सूरज
नेह-पर्व की
चंपा पर बैठी पिडुकी
दे रही दुहाई
रात चाँदनी
जब चंपा को दुलराती है
नेह-छुवन के गीत
हवा सँग वह गाती है
नदिया तीरे
किसी नाव पर
कोई बजाता है शहनाई
आधी रातों
बिना देह का देवा आता
इच्छापूरन वृक्ष
रोज़ चंपा हो जाता
चंपा में तब
किसी अप्सरा की छवि
देती हमें दिखाई
-कुमार रवीन्द्र
हिसार
हर बार की तरह एक फिर बहुत सुंदर नवगीत लिखा है कुमार रवीन्द्र जी ने। उन्हें बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआपका नवगीत पढना नवगीत की आत्मा से साक्षात्कार करने जैसा है। नवगीत की अनोखी कहन, नवीन विम्ब, कविता के लिए उपयुक्त शब्दचयन सब कुछ जादुई।
जवाब देंहटाएंरात चाँदनी
जवाब देंहटाएंजब चंपा को दुलराती है
नेह छुवन के गीत
हवा संग वह गाती है
भाव और लय के सुन्दर प्रभाव को दर्शाता नवगीत।
बहुत बधाई कुमार रवीन्द्र जी।