स्वप्न की अब राह भी है
स्वप्न के ही ठौर
जुगनुओं के साथ सोए
तारे भर भर हाथ बोए
रोशनी जमकर उगी
नयी नवेली भोर
बीता कल बक्सों में डाला
सोचा है नभ भर उजाला
मन पतंगी उड़ चला है
कम पड़ती-सी डोर
छोड़ दी पर्वत की पूजा
गान संघर्षों का गूँजा
नृत्य करती मंजिलें ज्यों
पंख पसारे मोर.
-परमेश्वर फुंकवाल
अहमदाबाद
स्वप्न के ही ठौर
जुगनुओं के साथ सोए
तारे भर भर हाथ बोए
रोशनी जमकर उगी
नयी नवेली भोर
बीता कल बक्सों में डाला
सोचा है नभ भर उजाला
मन पतंगी उड़ चला है
कम पड़ती-सी डोर
छोड़ दी पर्वत की पूजा
गान संघर्षों का गूँजा
नृत्य करती मंजिलें ज्यों
पंख पसारे मोर.
-परमेश्वर फुंकवाल
अहमदाबाद
सुन्दर भावों भरा बहुत सुन्दर नवगीत ...बहुत बधाई ...शुभ कामनाएँ !
जवाब देंहटाएंआ ज्योत्स्ना जी, आपका हार्दिक धन्यवाद.
हटाएंबीता कल बक्सों में डाला
जवाब देंहटाएंसोचा है नभ भर उजाला
मन पतंगी उड़ चला है
कम पड़ती-सी डोर...
बहुत बहुत सुंदर नवगीत के लिए परमेश्वर जी आपको हृदय से बधाई
आ कल्पना जी, आपका हार्दिक धन्यवाद आपकी उदार सराहना के लिए...
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआ रश्मि जी आपक धन्यवाद उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए. आपके दोनों ब्लॉग भी देखे...बहुत अच्छे लगे...विशेषकर इन्द्रधनुष में वह मासूमियत है जिसे हम खोते जा रहे हैं...
हटाएंभावपूर्ण सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक शुभकामनाएं परमेश्वर फुँकवाल जी।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक धन्यवाद आ सुरेन्द्रपाल जी.
हटाएंबीता कल बक्सों में डाला
जवाब देंहटाएंसोचा है नभ भर उजाला
मन पतंगी उड़ चला है
कम पड़ती-सी डोर ...
नई आशाओं की डोर थमाता प्यारा नवगीत....
आ कृष्ण नन्दन जी, आपका धन्यवाद महत्वपुर्ण प्रतिक्रिया के लिए.
हटाएंबहुत खूब परमेश्वर जी, बधाई स्वीकार करें
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