भारत माता, अभी हमें कुछ और सँवरना है
मुक्त गगन में अभी तिरंगा और फहरना है
राहों में कंटक अपने
सब बैरी डालेंगे
पर हम अपने सब घावों को
खुद धो डालेंगे
तरुणाई के इस आलम में नहीं बिखरना है
सोने सा तप तप कर हमको और निखरना है
धैर्य हमारा अब मत परखें
कह दो यह जाकर
पिछली सारी घटनाएँ जो
आये बिसराकर
पाँव रखें यदि छाती पर तो वहीं कुचलना है
भारत को अब मानचित्र पर और उभरना है
गालों पर बच्चों के फिर से
लाली लौटेगी
रामराज के जैसी फिर
खुशहाली लौटेगी
स्वार्थ त्याग कर मातृभूमि की सेवा करना है
बापू के सपनों को अब तो पूरा करना है
राणा प्रताप सिंह
जैसलमेर (राजस्थान)
मुक्त गगन में अभी तिरंगा और फहरना है
राहों में कंटक अपने
सब बैरी डालेंगे
पर हम अपने सब घावों को
खुद धो डालेंगे
तरुणाई के इस आलम में नहीं बिखरना है
सोने सा तप तप कर हमको और निखरना है
धैर्य हमारा अब मत परखें
कह दो यह जाकर
पिछली सारी घटनाएँ जो
आये बिसराकर
पाँव रखें यदि छाती पर तो वहीं कुचलना है
भारत को अब मानचित्र पर और उभरना है
गालों पर बच्चों के फिर से
लाली लौटेगी
रामराज के जैसी फिर
खुशहाली लौटेगी
स्वार्थ त्याग कर मातृभूमि की सेवा करना है
बापू के सपनों को अब तो पूरा करना है
राणा प्रताप सिंह
जैसलमेर (राजस्थान)
आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 15.08.2013 को http://nirjhar-times.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 16.08.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर देशप्रेम से भरा नवगीत।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं।
राहों में कंटक अपने
जवाब देंहटाएंसब बैरी डालेंगे
पर हम अपने सब घावों को
खुद धो डालेंगे
तरुणाई के इस आलम में नहीं बिखरना है
.... सुन्दर भावपूर्ण रचना..
बहुत खूब राणा प्रताप जी, इस सुंदर गीत के लिए बधाई स्वीकार करें
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