3 अगस्त 2013

१७. फूल चंपा के झर गए


तुमने क्या छुआ
फूल चंपा के झर गए.

सुधियाँ हैं
खोल रही अलसाई आँखें
छुगनी पर बैठ पंछी खोल रहा पांखें
हँसा चाँद, झील में स्वप्न
शत लहर गए.

भीनी- सी
खुश्बू उड़ी और अंतरंग हुई
डोलती तपस्या फिर हौले-से भंग हुई
प्याले दर प्याले, हैं मदिरा
से भर गए.

-शशिकांत गीते
खंडवा


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