तुमने क्या छुआ
फूल चंपा के झर गए.
सुधियाँ हैं
खोल रही अलसाई आँखें
छुगनी पर बैठ पंछी खोल रहा पांखें
हँसा चाँद, झील में स्वप्न
शत लहर गए.
भीनी- सी
खुश्बू उड़ी और अंतरंग हुई
डोलती तपस्या फिर हौले-से भंग हुई
प्याले दर प्याले, हैं मदिरा
से भर गए.
-शशिकांत गीते
खंडवा
अच्छी रचना के लिए गीते जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआ शशीकांत जी, इस मदमाते गीत के लिए बहुत बहुत अभिनन्दन...
जवाब देंहटाएंkyaa baat... kyaa baat...
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