गर्म हवाओं को सहला कर
कर लेता शीतल
डीहे का पीपल।
इसकी छाया में आ
मिटती पीर पसीनों की
यह चबूतरा है सुख–शैय्या
दीनों–हीनों की
सुस्ताने आते दुपहर को
यहाँ, बैल औ हल।
साँझ–सुबह जुटतीं चौपालें
चतुर सयानों की
बहसें, राजनीति पर
चर्चा, गाँव सिवानों की
कौन, दाँव में हार गया सब
कौन रहा अव्वल।
सोख, धूप का ताप
शान से यह लहराता है
ले, खुद विष की साँस
हमें अमृत लौटाता है
सरल साधु सा उपकारी
यह ज्यों माँ का आँचल।
– कृष्ण नन्दन मौर्य
प्रतापगढ़ (उ.प्र.)
कर लेता शीतल
डीहे का पीपल।
इसकी छाया में आ
मिटती पीर पसीनों की
यह चबूतरा है सुख–शैय्या
दीनों–हीनों की
सुस्ताने आते दुपहर को
यहाँ, बैल औ हल।
साँझ–सुबह जुटतीं चौपालें
चतुर सयानों की
बहसें, राजनीति पर
चर्चा, गाँव सिवानों की
कौन, दाँव में हार गया सब
कौन रहा अव्वल।
सोख, धूप का ताप
शान से यह लहराता है
ले, खुद विष की साँस
हमें अमृत लौटाता है
सरल साधु सा उपकारी
यह ज्यों माँ का आँचल।
– कृष्ण नन्दन मौर्य
प्रतापगढ़ (उ.प्र.)
जवाब देंहटाएंआदरणीय वर्मा जी बहुत प्यारा नवगीत है सुन्दर नवगीत हेतु हार्दिक बधाई
सुन्दर नवगीत हेतु हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंEk sundar navgeet ke lie badhai
जवाब देंहटाएंEk meethe aur bhawpurn navgeet ke lie badhai
जवाब देंहटाएं