पथ निहारता रहता पीपल,
किन्तु न मैं उस तक जा पाता।
इस जीवन की भूल-भुलैया
मुझको अपने में उलझाती,
समय-डाकिया दे जाता है
अब भी स्मृतियों की पाती,
मैं सुदूर, पर कभी न भूला
पीपल से वह प्यारा नाता।
वह स्निग्ध पात पीपल के
वह सुमधुर संगीत सुहाना,
नटखट बचपन बुनता रहता
मन-भावन सा ताना-बाना,
जब मन होता तभी डाल पर
चढ़ जाता, खुश होकर गाता।
गुल्ली-डंडा, चोर -सिपाही,
कितने खेल छाँह में खेले,
स्वप्न हुए वे दिन सोने से
आते रहते याद अकेले,
कभी कल्पना के विमान में
अनायास उन तक हो आता।
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
माउंट आबू (राजस्थान)
किन्तु न मैं उस तक जा पाता।
इस जीवन की भूल-भुलैया
मुझको अपने में उलझाती,
समय-डाकिया दे जाता है
अब भी स्मृतियों की पाती,
मैं सुदूर, पर कभी न भूला
पीपल से वह प्यारा नाता।
वह स्निग्ध पात पीपल के
वह सुमधुर संगीत सुहाना,
नटखट बचपन बुनता रहता
मन-भावन सा ताना-बाना,
जब मन होता तभी डाल पर
चढ़ जाता, खुश होकर गाता।
गुल्ली-डंडा, चोर -सिपाही,
कितने खेल छाँह में खेले,
स्वप्न हुए वे दिन सोने से
आते रहते याद अकेले,
कभी कल्पना के विमान में
अनायास उन तक हो आता।
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
माउंट आबू (राजस्थान)
बहुत सुंदर गीत ।
जवाब देंहटाएंपथ निहारता रहता पीपल,
जवाब देंहटाएंकिन्तु न मैं उस तक जा पाता।
इस जीवन की भूल-भुलैया
मुझको अपने में उलझाती,
समय-डाकिया दे जाता है
अब भी स्मृतियों की पाती,
मैं सुदूर, पर कभी न भूला
पीपल से वह प्यारा नाता। . वाह बहुत सुन्दर, नवगीत हेतु हार्दिक बधाई आ. त्रिलोक सिंह जी