देवालय का सजग सन्तरी,
हर-पल राग सुनाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
इसकी शीतल छाया में,
सारे प्राणी सुख पाते हैं,
कागा और कबूतर इस पर,
अपना नीड़ बनाते हैं,
देवालय में पीपल राजा,
देवों से बतियाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
सभी आस्थावान लोग,
जल इस पर रोज चढाते हैं,
बजरंगी हुनमान वीर को,
अपना शीश नवाते हैं,
देवालय के देवों का तो,
पीपल ही उद्गाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
पेड़ लगायें कहाँ आज हम,
आँगन तो अब नहीं रहे,
जंगल खाली हुए धरा से,
कैसे शीतल हवा बहे?
कंकरीट का जंगल अब तो,
सबको बहुत लुभाता है
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
-रूपचंद्र शास्त्री मयंक
खटीमा (उत्तराखंड)
हर-पल राग सुनाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
इसकी शीतल छाया में,
सारे प्राणी सुख पाते हैं,
कागा और कबूतर इस पर,
अपना नीड़ बनाते हैं,
देवालय में पीपल राजा,
देवों से बतियाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
सभी आस्थावान लोग,
जल इस पर रोज चढाते हैं,
बजरंगी हुनमान वीर को,
अपना शीश नवाते हैं,
देवालय के देवों का तो,
पीपल ही उद्गाता है।
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
पेड़ लगायें कहाँ आज हम,
आँगन तो अब नहीं रहे,
जंगल खाली हुए धरा से,
कैसे शीतल हवा बहे?
कंकरीट का जंगल अब तो,
सबको बहुत लुभाता है
प्राणवायु को देने वाला ही,
पीपल कहलाता है।।
-रूपचंद्र शास्त्री मयंक
खटीमा (उत्तराखंड)
सुन्दर गीत हेतु हार्दिक बधाई आ शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-06-2014) को "बैल बन गया मैं...." (चर्चा मंच 1632) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत ही सुंदर लिखा है …… बहुत दिनों से टिप्पणी नहीं कर पा रहा था आज हो गयी ।
जवाब देंहटाएंअच्छा गीत है. पीपल के लौकिक पारलौकिक mahatv को rekhankit करता हुआ.
जवाब देंहटाएंरामशंकर वर्मा
लखनऊ