29 मई 2014

१३. वृद्ध पीपल यह

वृद्ध पीपल यह
खड़ा चौपाल के आगे
साक्षी अनगिन-अकथ
मौखिक कथाओं का

आयु में भी यह
पितामह से बड़ा है
पीढ़ियां खेलीं
कई इसके तले हैं
हर अमंगल के
हरण की कामना के ,
मनौती के दीप
चरणों में जले हैं

इन बदलती
आस्थाओं के क्षरण में
साक्षी पीपल बना
निष्ठुर व्यथाओं का

हो रहे बदलाव
श्रम के साधनों में
हम बदलते जा रहे
सहकार से भी
चेतना कच्चे कलावों से
बंधी जो
छोड़ पाये हैं नहीं
व्यवहार से भी

ये हमारे नीम
पीपल और बरगद
दे रहे सन्देश अब भी
हैं प्रथाओं का

-जगदीश पंकज
गाजियाबाद

2 टिप्‍पणियां:

  1. चेतना कच्चे कलावों से
    बंधी जो
    छोड़ पाये हैं नहीं
    व्यवहार से भी.

    एक सुगठित और संवेदी नवगीत आपका मान्यवर। मुझे बहुत अच्छा लगा.
    मुखड़ा तो कमाल ka है.

    रामशंकर वर्मा
    लखनऊ

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