तुम कनेर के फूल
ओ! कितने दर्द छुपाए बैठे हो
बरसों से बैठे निराश,
निज ह्रदय लिए, इक करुण प्यास,
हर मौसम में खिलते उदास
पंखुरियों में भर मधुर हास
क्या शीतलता पाने को हिय में,
आस लगाये बैठे हो
हम तो खुद, अपनों में अर्पण,
पर तुम करते, जग हित तर्पण
तुमने कितना, संताप सहा,
इस जग का, कितना पाप सहा,
फिर भी जन-जन के जीवन का,
उपहार सजाए बैठे हो
तुम बने भोग, बस भ्रंगों का,
राजा के कोमल, अंगों का,
हर दुख में, मेरे साथ रहे
हर सुख में, मेरे साथ हँसे,
तुम देकर मुझको सघन छाँव
निज, ताप छुपाए बैठे हो
-देवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय
रींवाँ
ओ! कितने दर्द छुपाए बैठे हो
बरसों से बैठे निराश,
निज ह्रदय लिए, इक करुण प्यास,
हर मौसम में खिलते उदास
पंखुरियों में भर मधुर हास
क्या शीतलता पाने को हिय में,
आस लगाये बैठे हो
हम तो खुद, अपनों में अर्पण,
पर तुम करते, जग हित तर्पण
तुमने कितना, संताप सहा,
इस जग का, कितना पाप सहा,
फिर भी जन-जन के जीवन का,
उपहार सजाए बैठे हो
तुम बने भोग, बस भ्रंगों का,
राजा के कोमल, अंगों का,
हर दुख में, मेरे साथ रहे
हर सुख में, मेरे साथ हँसे,
तुम देकर मुझको सघन छाँव
निज, ताप छुपाए बैठे हो
-देवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय
रींवाँ
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