किसने रोके पाँव अचानक
धीरे-धीरे टेर के।
उजले-पीले भर आए
आँगन में फूल
कनेर के।
दिन भर गुमसुम सोई माधवी
तनिक नहीं आभास रहा
घिरा अँधेरा खूब नहाई
सुगन्ध- सरोवर पास रहा।
पलक बिछाए बिछे धरा पर
प्यारे फूल
कनेर के।
मन बौराया चैन न पाए
व्याकुल झुकती डाल-सा
पीपल के पत्ते सा थिरके
हिलता किसी रूमाल-सा।
चोर पुजारी तोड़ ले गया
प्रातः फूल
कनेर के
- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
नई दिल्ली
धीरे-धीरे टेर के।
उजले-पीले भर आए
आँगन में फूल
कनेर के।
दिन भर गुमसुम सोई माधवी
तनिक नहीं आभास रहा
घिरा अँधेरा खूब नहाई
सुगन्ध- सरोवर पास रहा।
पलक बिछाए बिछे धरा पर
प्यारे फूल
कनेर के।
मन बौराया चैन न पाए
व्याकुल झुकती डाल-सा
पीपल के पत्ते सा थिरके
हिलता किसी रूमाल-सा।
चोर पुजारी तोड़ ले गया
प्रातः फूल
कनेर के
- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
नई दिल्ली
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