5 जुलाई 2014

२३. घंटियाँ कनेर पर

बैठ गयी बौराई
पुरवाई पेड़ पर।
हिलने लगीं स्वर्णमयी
घंटियाँ कनेर पर।

ललछौहें बादल की
ओट लिए ताक में
आखेटक बैठा है
उसकी फिराक में।
ग्रीषम के लूएँ उसे
लाईं हैं घेर कर।

हरे हरे पत्तों के
शीतल स्पर्श ने
शरणागत आगत के
आश्रय सहर्ष ने
आँख बिछा उससे कहा
सो जा न देर कर।

आदि या अनादि
पूर्व उसके भी काल से
सभ्यताएँ शेष
मात्र इनकी ही ढाल से
ये न होंगे साथ
होंगे सभी भस्म ढेर पर।

-रामशंकर वर्मा
लखनऊ

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