हरित डाल में पीला झूमर
ना सूरज ना पछुआ का डर
धूप रंग कलसी में भरता
सोने जैसा
फूल कनेर।
ऋतु वासंती छोड़ गई थी
कोई रिश्ता जोड़ गई थी
धरती की गोदी में पलता
नन्हा मुन्ना
फूल कनेर।
सूर्य किरन आ गले लगाती
डाली डाली रंग बिखराती
मालिन की डलिया में जलता
दीप माल सा
फूल कनेर।
चाह कभी ना घनी छाँव की
चिन्ता ना थी गर्म घाम की
सैनिक के तग़मों सा सजता
भरी दोपहरी
फूल कनेर।
- शशि पाधा
यू.एस.ए.
ना सूरज ना पछुआ का डर
धूप रंग कलसी में भरता
सोने जैसा
फूल कनेर।
ऋतु वासंती छोड़ गई थी
कोई रिश्ता जोड़ गई थी
धरती की गोदी में पलता
नन्हा मुन्ना
फूल कनेर।
सूर्य किरन आ गले लगाती
डाली डाली रंग बिखराती
मालिन की डलिया में जलता
दीप माल सा
फूल कनेर।
चाह कभी ना घनी छाँव की
चिन्ता ना थी गर्म घाम की
सैनिक के तग़मों सा सजता
भरी दोपहरी
फूल कनेर।
- शशि पाधा
यू.एस.ए.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।