26 जुलाई 2014

२९. मौसम के ओ पहले बादल - संजीव सलिल

मन भावन सावन घर आया
रोके रुका न छली बली

कोशिश के दादुर टर्राये
मेहनत मोर झूम नाचे
कथा सफलता-नारायण की-
बादल पंडित नित बाँचे
ढोल मँजीरा मादल टिमकी
आल्हा-कजरी गली-गली

सपनाते सावन में मिलते
अकुलाते यायावर गीत
मिलकर गले सुनाती-सुनतीं
टप-टप बूँदें नव संगीत
आशा के पौधे में फिर से
कुसुम खिले नव गंध मिली

हलधर हल धर शहर न जाये
सूना हो चौपाल नहीं
हल कर ले सारे सवाल मिल
बाकी रहे बबाल नहीं
उम्मीदों के बादल गरजे
बाधा की चमकी बिजली

भौजी गुझिया-सेव बनाये,
देवर-ननद खिझा-खाएँ
छेड़-छाड़ सुन नेह भरी
सासू जी मन-मन मुस्कायें
छाछ-महेरी के सँग खाएँ
गुड़ की मीठी डली लली

नेह निमंत्रण पा वसुधा का
झूम मिले बादल साजन
पुण्य फल गये शत जन्मों के-
श्वास-श्वास नंदन कानन
मिलते-मिलते आस गुजरिया
के मिलने की घड़ी टली

नागिन जैसी टेढ़ी-मेढ़ी
पगडंडी पर सम्हल-सम्हल
चलना रपट न जाना- मिल-जुल
पार करो पथ की फिसलन
लड़ी झुकी उठ मिल चुप बोली
नज़र नज़र से मिली भली

गले मिल गये पंचतत्व फिर
जीवन ने अंगड़ाई ली
बाधा ने मिट अरमानों की
संकुच-संकुच पहुनाई की
साधा अपनों को सपनों ने
बैरिन निन्दिया रूठ जली

- आचार्य संजीव सलिल

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