25 जुलाई 2014

२८. गाज गिरी खलिहानों पर - संध्या सिंह

मौसम कुछ बिगलैड़ हुआ तो
बैठ गया तूफानों पर
हरियाली के लिए मेघ थे
बरस गए चट्टानों पर

कहीं जमी
पत्थर पर काई
मशरूमों के झुण्ड उगे
कहीं खेत
में सूखी मिट्टी
चिड़िया सारा बीज चुगे

कुदरत की ये मस्ती ठहरी
गाज गिरी खलिहानों पर

खेतों के
हिस्से का पानी
ऊपर नभ में ही खोया
पथरीली
धरती पर जा कर
अम्बर ने काजल धोया

आज हवा की बुरी नज़र है
पावस के वरदानों पर

मेघ पवन की
मनमानी को
कोई कह दे सागर से
कौन पते पर
बादल भेजे
कौन पते पर जा बरसे

हरकारों ने मिट्टी फेरी
मेहनत के अरमानों पर

- संध्या सिंह

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