पाप बरसे, कलुष बरसे
और बरसें वासनायें
अब बिना श्रीकृष्ण आखिर
कौन गोवर्धन उठाये
लोभ हरियाये बहुत
आचार मूर्छित हो गये हैं
आजकल भगवान बनकर
लोग पूजित हो रहे हैं
कौन अंधी दृष्टि को
झकझोर कर फिर से जगाये
धूल बिखरी सभ्यता पर
पुष्ट भौतिकता हुयी है
मूल्य मूल्यों के गिरे हैं
नष्ट नैतिकता हुयी है
कौन ऐसे वक्त में फिर
धर्म का बीड़ा उठाये
समझ में आता नहीं है
किस सतह पर हम खड़े हैं
दुधमुही मुस्कान पर
हैवान के पंजे पड़े हैं
सोचना है अब हमें
कुछ करें या बस छटपटायें
- रविशंकर मिश्र रवि
प्रतापगढ़
और बरसें वासनायें
अब बिना श्रीकृष्ण आखिर
कौन गोवर्धन उठाये
लोभ हरियाये बहुत
आचार मूर्छित हो गये हैं
आजकल भगवान बनकर
लोग पूजित हो रहे हैं
कौन अंधी दृष्टि को
झकझोर कर फिर से जगाये
धूल बिखरी सभ्यता पर
पुष्ट भौतिकता हुयी है
मूल्य मूल्यों के गिरे हैं
नष्ट नैतिकता हुयी है
कौन ऐसे वक्त में फिर
धर्म का बीड़ा उठाये
समझ में आता नहीं है
किस सतह पर हम खड़े हैं
दुधमुही मुस्कान पर
हैवान के पंजे पड़े हैं
सोचना है अब हमें
कुछ करें या बस छटपटायें
- रविशंकर मिश्र रवि
प्रतापगढ़
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