5 सितंबर 2014

५. जादू की बाँसुरी - डॉ. प्रदीप शुक्ल


दूर देश में जादू की
बाँसुरी बजाता है
पूरब से सोने की चिड़िया
पास बुलाता है !!

जादूगर बंजर धरती की
काया पलट गये
सपनों के जंगल उग आये
फिर से नये नये
सोन चिरैया को ये जंगल
खूब लुभाता है !

जादू से अब शहर बनेंगे
सुन्दर चमकीले
गुरु उत्सव पर दीक्षा लेंगे
शहरी जहरीले
सोच सोच गौरैय्या का अब
जी घबराता है !

मायाजाल रहेगा कब तक
कोई नहीं जाने
ज्यादातर तो लोग इसे बस
असली ही माने
सच ही हो भ्रमजाल
रोज मन यही मनाता है !


- डॉ. प्रदीप शुक्ल
लखनऊ

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