4 सितंबर 2014

४. पेड़ों के बिन कैसे - पवनप्रताप सिंह पवन

जरा सोचिए जी पाएँगे
पेड़ों के बिन कैसे ?

धुक-धुक रेल चलेगी कैसे ?
जीवन गाड़ी के इंजन में
पटरी पर चलने की क्षमता
कैसे आएगी जन-जन में ?
कैसे जीवन स्टेशन पर,
गुजरे पल-छिन कैसे ?

सारी दुनिया बिन पेड़ों के
विधवा जैसी बेबस होगी
उजड़ी सूरत औ उदास मन
दूर-दूर तक आतप होगी ।
शिलाखंड ही नजर आएँगे
होंगे वो दिन कैसे ?

कैसे बारिश करने मेघा
भू से जल लेकर के ऊपर
उड़ पाएँगे बोलो कैसे ?
कैसे होगी वर्षा भू पर ?
बाग-बगीचे मुरझाएँगे
सींचे मालिन कैसे ?

जितनी हत्याएं पेड़ों की
मानव ने स्वारथ बस की हैं
उतनी ही मानव हत्याएं
मानव ने खुद निश्चित की हैं
चाहे जब मातम पसरेगा
आएँगे दिन ऐसे ।

धरा सुरक्षित गर रखना है
हमें आज प्रण ये करना है
पेड़ लगाकर पालन पोषण
बच्चों के जैसे करना है ।
ओढेगी हरियल-सी चुनरी
धरती दुल्हन जैसे

- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
सौन्हर, नरवर (म.प्र.)

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