गीत और नवगीत को लेकर तमाम तरह के विचार हैं। उन सब बड़ी-बड़ी बातों को छोड़कर हम इतना समझ लें कि गीत की कोख से ही नवगीत ने जन्म लिया है अर्थात गीत का आधुनिक संस्करण ही नवगीत है।
नवगीत लिखते समय इन बातों का ध्यान रखें-
० संस्कृति व लोकतत्त्व का समावेश हो।
० तुकान्त की जगह लयात्मकता को प्रमुखता दें।
० नए प्रतीक व नए बिम्बों का प्रयोग करें।
० कल्पना की जगह फंतासी को अधिक महत्त्व दें।
० दृष्टिकोण वैज्ञानिकता लिए हो।
० सकारात्मक सोच हो।
० बात कहने का ढँग कुछ नया हो।
० जो कुछ कहें उसे प्रभावशाली ढँग से कहें।
० शब्द-भण्डार जितना अधिक होगा नवगीत उतना अच्छा लिख सकेंगे।
० नवगीत को छन्द के बंधन से मुक्त रखा गया है परन्तु लयात्मकता की पायल उसका शृंगार है, इसलिए लय को अवश्य ध्यान में रखकर लिखे और उस लय का पूरे नवगीत में निर्वाह करें।
० नवगीत लिखने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि प्रकृति का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करें और जब स्वयं को प्रकृति का एक अंग मान लेगें तो लिखना सहज हो जाएगा।
--- अब आप वसंत और पतझर पर केन्द्रित एक नवगीत लिखें और तुरन्त नवगीत की पाठशाला में शामिल हो जाएँ, यहाँ आपकी प्रतीक्षा सभी को है।
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शेष आपके नवगीत के बाद।
-डा० जगदीश व्योम
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नवगीतों के कुछ अंश --
" बान कूटता है
मुगरी लेकर सुख का
राज लूटता है
मूज के फाले-छाले
अच्छे बांधो वाले
ऍसे बैठे ठाले
काज टूटता है।"
(सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला)
" कुछ समीप की
कुछ सुदूर की
कुछ चन्दन की
कुछ कपूर की
कुछ में गेरू
कुछ में रेशम
कुछ में केवल जाल
ये अनजान नदी की नावें
जादू के से पाल। "
(डा० धर्मवीर भारती)
" शैवालों पर मरी मछलियाँ
रक कर चली गईं जल परियाँ
उतर रहे हैं गिद्ध गगन से
रच रेती पर चित्र पवन से
चले गए वे दिन उन्मन से। "
(डा० रामदरश मिश्र)
" ठिगने कद वाले दिन
लम्बी परछाइयाँ
धूप की इकाई पर
तिमिर की दहाइयाँ
रातें पत्तल हुईं
दिन दोने हो गए।"
( उमाकान्त मालवीय)
" वाँचते हम रह गए अन्तर्कथा
स्वर्णकेशा गीत वधुओं की व्यथा
ले गया चुनकर कमल कोई हठी युवराज
देर तक शैवाल-सा हिलता रहा मन। "
(किशन सरोज)
" महुए की कूच
गुलमोहर के फूल
आँख भरी पगडंडी
गमछे में धूल
झउए की गंध मेरा गाँव
मन का अनुबंध मेरा गाँव ।"
(डा० इशाक अश्क)
" रात उतरती सीवानो में
पाँव ऊँघते मैदानो में
दूर अँधेरे में सन-सन-सन
आल्हा गाते बाँसों के दिन। "
(डा० राजेन्द्र गौतम)
आओ, घर लौट चलें
जवाब देंहटाएंऔर नहीं, भीड़ भरा यह सूनापन
आओ ,घर लौट चलें,ओ मन,
आमों में ,डोलने लगी होगी गन्ध
अरहर के आसपास ही होंगे छन्द,
टेसू के दरवाजे होगा ,यौवन
आओ , घर लौट चलें, ओ मन,
सरसों के पास ही खड़ी होगी,
मेड़ों पर ,अलसाती हुई बातचीत,
बंसवट में घुमने लगे होंगे गीत
महुओं ने घेर लिया होगा ,आंगन,
खेतों में तैरने लगे होंगे,दृश्य
गेहूँ के घर ही होगा अभी,भविष्य,
अंगड़ाता होगा खलिहान में, सृजन,
आओ , घर लौट चलें, ओ मन,
और नहीं, भीड़ भरा यह सूनापन
डा० विनोद निगम
गाढी हो गई धुप
जवाब देंहटाएंनीमों के नीचे भी ,
गाढी हो गई धुप
सूख गए फल वाले हरे कुंज आमों के,
फूल के बगीचे भी,
छायाएं सिमट गईं वस्त्रहीन पेड़ों में,
सूखापन बिछा हुआ, खेतों में, मेड़ों में
हाँफ रहा शहर ,गर्म हवा के थपेड़ों में,
उड़ती है तपी धूल ,
आगे भी ,पीछे भी,
सड़कों पर दूर दूर सन्नाटा.
झुलस गया कोलाहल
सूखा, आकर्षण चौराहों का
कुम्हलायी चहल॰पहल
भाप बन गए ,पुरइन वाले तालाब कुएं
कलशों का ठंडा जल,
बित्तों भर बची नदी ,
भिगो नहीं सकी मुई गोरी की घांघर को
टखनों के नीचे भी,
कमरों में जमीं हुई खामोशी,
बाहर है पिघलापन,
मौसम के आग बुझे हाथ, छू रहे तन को,
मन को भी घेरे है, एक तपन,
और एक याद, जो चमक उठती रह रह
ज्यों धूप में टंगा दर्पण ,
सुलग रहे हरियाली के आँचल,
दूब के गलीचे भी,
नीमों के नीचे भी ,
गाढी हो गई धुप
पूर्णिमा दीदी ने इस चिठ्ठे का पता बताया और कहा कि यहाँ भेज देना नवगीत . यहाँ तो देख रही हूँ, आपने बसंत और पतझर पर केद्रित नवगीत माँगा था :) इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ कि मेरा गीत केवल जीवन से सम्बंधित है इन विषयों से नहीं.
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क्या यह नवगीत है ?
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हो दूर मुझ से, मेरे मन रे !
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जिस पात्र में है भोग बनता
हरि-चरण पे वह न चढ़ता
सत्य जीवन के समझ ले
फिर चाहे जिस भी अगन चढ़ ले
चाहे जितने गीत गढ़ ले !
तप्त लोहा, ऊष्ण कंचन
दग्ध कण्ठ और प्रज्जवलित मन
पाषाण को ये प्रिय, समझ ले
फिर चाहे जो अभिशाप सर ले
हो दूर मुझ से, मेरे मन रे !
हो दूर मुझ से, मेरे मन रे !
---सादर, शार्दुला
shar_j_n@yahoo.com
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पतझड़ की पगलाई धूप
जवाब देंहटाएंभोर भई जो आँखें मींचे
तकिया को सिरहाने खींचे
लोट गई इक बार पीठ पर
ले लम्बी जम्हाई धूप
अनमन सी अलसाई धूप
पोंछ रात का बिखरा काजल
सूरज नीचे दबा था आंचल
खींच अलग हो दबे पैर से
देह आँचल सरकाई धूप
यौवन ज्यों सुलगाई धूप
फुदक फुदक खेले आंगन भर
खाने-खाने एक पांव पर
पत्ती-पत्ती आंख मिचौली
बचपन सी बौराई धूप
पतझड़ की पगलाई धूप
--Manoshi
आदरणीय व्योम जी ने बहुत अच्छे ढंग से नवगीत लेखन के विषय में दिशा दी है ..आपका बहुत -बहुत आभार ..
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