28 मार्च 2009

अच्छा नवगीत

नवगीत में बहुत कुछ ऐसा होता है जिसे महसूस किया जा सकता है पर उसकी पूरी व्याख्या कर पाना सर्वथा कठिन है। लोक में प्रचलित ऐसे ठेठ शब्द जिन्हें लोकसमाज ने उनका इतना प्रयोग किया है कि ये शब्द सिद्ध से हो गए हैं। लेकिन ऐसे ठेठ लोक शब्दों का सटीक प्रयोग कर पाना सबके बस की बात नहीं है। अभिव्यक्ति और छन्द नितान्त नया पर लोक शब्दों और लोक मुहावरों का ऐसा प्रयोग जो कथन की ताजगी का अहसास कराये। मानोशी के नवगीत में प्रयुक्त शब्द- पगलाई, भोरभई, आँखें मींचे, तकिया, खींचे, धूप का लम्बी जम्हाई लेना, रात रूपी काजल को पोंछना,फुदक फुदक कर आँगन में खेलना ............... ये सारे लोक शब्द, लोक मुहावरे, नया प्रतीक विधान, लयात्मकता आदि के सटीक प्रयोग से यह नवगीत बहुत ही सुन्दर और सुव्यवस्थित नवगीत है।
-संपादक

पतझड़ की पगलाई धूप

भोर भई जो आँखें मींचे
तकिया को सिरहाने खींचे
लोट गई इक बार पीठ पर
ले लम्बी जम्हाई धूप !
अनमन सी अलसाई धूप !!

पोंछ रात का बिखरा काजल
सूरज नीचे दबा था आंचल
खींच अलग हो दबे पैर से
देह आँचल सरकाई धूप !
यौवन ज्यों सुलगाई धूप !!


फुदक-फुदक खेले आंगन भर
खाने-खाने एक पांव पर
पत्ती-पत्ती आंख मिचौली
बचपन सी बौराई धूप !
पतझड़ की पगलाई धूप !!

-मानोशी

1 टिप्पणी:

  1. बहुत धन्यवाद कटारे जी। आपके प्रोत्साहन से कुछ और नवगीत लिखने की कोशिश करूँगी।

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