10 अप्रैल 2009

दो वासंती नवगीत

इस सप्ताह नवगीत की पाठशाला में दो और नवगीत प्राप्त हुए हैं। दोनों ही गीतों के रचयिता पं. गिरिमोहन गुरु हैं-

(१ )
लो , वसन्त आ गया॰॰॰
कोयल है दुखी दुखी
दिखता न कोई सुखी
न जाने कौओं को कैसे यह भा गया॰॰॰॰॰

मन है उन्मन उन्मन
साथ रहे कब तक तन
मधुर कल्पनाओं को केवल थिरका गया॰॰॰॰

प्रीत हुई राजनीति
वृद्धा गाए नए गीत
आजादी लहरों की स्वयं तीर खा गया॰॰॰

[ 2 ]
वृक्ष वसन्त हुआ॰॰॰॰॰
सूखी शाख हरी होने का
भ्रम पाले बैठी है
क्यों कि एक हरी चिड़िया
उस पर आकर बैठी है.
दो पंक्ति लिखकर कवि समझा
मैं भी पन्त हुआ॰॰॰॰

लाल रंग काले चेहरे को
कब तक देगा लाली
अपने गत गौरव को कब तक
गायेगी वैशाली
मधुशाला से लौट भक्त
मन्दिर में सन्त हुआ ॰॰॰॰

-पं. गिरिमोहन गुरु

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