22 अप्रैल 2009

मैं समर्पित बीज सा

आप सब के नवगीत मिल रहे हैं। सभी का धन्यवाद। नवगीत भेजने की आखिरी तिथि है ३० अप्रैल, २००९। याद रहे कि गीत भेजते समय

१.गीत टिप्पणी में न भेजें बल्कि इस पते पर भेजें- manoshi@gmail.com
२. अप्रैल माह के लिये आमंत्रित गीत के मुखड़े में निम्नलिखित पंक्ति आना ज़रूरी है - प्यार का रंग न बदला
३. पूरी जानकारी फिर से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें-

आज एक और सुंदर नवगीत पढ़िये, श्री बुद्धिनाथ मिश्र द्वारा लिखा हुआ-

मैं समर्पित बीज सा

मैं वहीं हूँ, जिस जगह पहले कभी था
लोग कोसों दूर आगे बढ़ गए हैं।

ज़िंदगी यह एक लड़की साँवली-सी
पाँव में जिसने दिया है बाँध पत्थर
दौड़ पाया मैं कहाँ उनकी तरह ही
राजधानी से जुड़ी पगडंडियों पर
मैं समर्पित बीज-सा धरती गड़ा
लोग संसद के कंगूरे चढ़ गए हैं।

तंबुओं में बँट रहे रंगीन परचम
सत्य गूँगा हो गया है इस सदी में
धान पंकिल खेत जिनको रोपना था
बढ़ गए वे हाथ धो बहती नदी में
मैं खुला डोंगर-सुलभ सबके लिए हूँ
लोग अपनी व्यस्तता में मढ़ गए हैं।

खो गई नदियाँ सभी अंधे कुएँ में
सिर्फ़ नंगे पेड़ हैं लू के झँबाए
ढिबरियों से टूटनेवाला अंधेरा
गाँव भर की रोशनी पी, मुस्कुराए
शालवन को पाट, जंगल बेहया के
आदतन मुझ पर तबर्रा पढ़ गए हैं।

--बुद्धिनाथ मिश्र

3 टिप्‍पणियां:

  1. गीत में नवगीत की खांटी ज़मीनी गंध का स्पर्श तो है पर पारम्परिकता का असर अधिक है... शब्द चयन सही है. लय तथा रस बरक़रार है.

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  2. बहुत ही सुन्दर लगा यह गीत :" मैं समर्पित बीज सा" .
    "ज़िंदगी यह एक लड़की साँवली-सी
    पाँव में जिसने दिया है बाँध पत्थर"
    वाह !
    सादर शार्दुला

    जवाब देंहटाएं

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