8 जून 2009

७- पत्तों से पेड़ों के

पत्तों से पेड़ों के
आतीं छनकर किरणें
आग सी बरसती है
मानव की बात दूर,
पौधे कुम्हलाते हैं।

चलती है गरम हवा
लू लगने के डर से
घर में छिप जाते हैं
धूप से पराजित हो
तड़प-तड़प जाते हैं

रुकने की आस लिए
बढते जाते पथिक
छाँव कहीं आगे है
जलते हैं पैर भले
चलते ही जाते हैं

नीम तले खटिया पर
सोने सी दोपहरी
लेटकर बिताते हैं
चाँदी-सी रातों में
थककर सो जाते हैं

--हरि शर्मा

9 टिप्‍पणियां:

  1. इस गर्मी के मौसम में तो सच में यही हाल है ,पर पथिक छाँव के इंतजार में निरंतर चलता ही जाता है....

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  2. गर्मी के दिन...
    कुन्दन से दिन...अब
    चाँदी सी रातें।

    क्या बात है, इतनी तपाने वाली गर्मी को बहुत ही खूबसूरत अल्फाज़ मिल रहे हैं। इस बार के नवगीत पढ़ कर गर्मी और खुश होकर कहीं मेहरबान न हो जाए।
    ...
    रुकने की आस लिए
    बढते जाते पथिक
    छाँव कहीं आगे है
    जलते हैं पैर भले
    चलते ही जाते हैं
    ...
    क्या करें, छाया तक पहुँचने के लिए उस तपिश को सहना ही होता है। शायद जीवन में मंज़िल का पथ भी कुछ इसी तरह का होता है। अच्छा लिखा है।

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  3. रुकने की आस लिए
    बढते जाते पथिक
    छाँव कहीं आगे है
    जलते हैं पैर भले
    चलते ही जाते हैं

    सही और क्या बात कही है की चाह कर भी पथिक को आगे बढ़ना ही पड़ता है। मंज़िल जो पानी है... छाँव की आस में भी....

    बहुत बढ़िया लिखा है ..बधाई...

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  4. एक लंबी और एक छोटी दो दो वाक्यों की जोड़ी पर आधारित छंद वाली यह रचना पढ़ने में आनंद आता है। गर्मी के मौसम के सुंदर वर्णन के साथ शब्दों में लय और रवानी है, जिसके लिए रचनाकार बधाई के पात्र हैं। नीम तले खटिया... सोने सी दोपहरी चाँदी सी रातें, बहुत खूब...

    --पूर्णिमा वर्मन

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  5. गर्मी के दिन और रात का चित्रण
    सफलतापूर्वक किये
    ये नवगीत
    बहुत पसँद आया
    - लावण्या

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  6. "नीम तले खटिया पर
    सोने सी दोपहरी"

    सुंदर पंक्तियों से सजी सुंदर गीत...

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  7. बहुत अच्छा नवगीत है । सभी नवीन प्रयोग प्रकृति के आसपास घूमते इस गीत में मुख्य पंक्तियाँ और बना दी जायें तो चार चाँद लग जायेंगे। जैसे ॰॰
    आते हैं जाते हैं गर्मी के दिन
    कितने इतराते हैं गर्मी के दिन।
    दूसरी कमी है एक मात्रा का अभाव । सभी पंक्तियाँ १२ मात्रा वाली हैं पर एक पंक्ति ११ मात्रा की है॰॰॰
    रुकने की आस लिए
    बढते जाते पथिक
    यहाँ पथिक के स्थान पर राही कर लें या ४ मात्रा वाला कोई भी शब्द। अच्छे नवगीत के लिये बहुत बहुत बधाई

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  8. गर्मी का चित्रण इन पंक्तियों में
    अच्छा बन पडा है.-

    रुकने की आस लिए
    बढते जाते पथिक
    छाँव कहीं आगे है
    जलते हैं पैर भले
    चलते ही जाते हैं
    - विजय

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