गर्मी की ऋतु ऐसी
जिसमें साजन भये विदेशी
सारे ए.सी. बन्द पड़े
कैसे कैसे समय कटे।
तन जलता
मन बहुत मचलता
दिन निकले कैसे
शुष्क नदी में
मीन तड़पती
बिन पानी जैसे
ताल तलैया सूख गए हैं
पोखर सब सिमटे।
अंगिया उमसे
बिस्तर चुभता
तन तरबतर हुआ
कहाँ जायें है पीछे खाई
आगे मुआं कुआं
सब सोलह शृंगार व्यर्थ ही
टप टप टप टपके।
कैसे कैसे समय कटे।
--डॉ. रमा द्विवेदी
जिसमें साजन भये विदेशी
सारे ए.सी. बन्द पड़े
कैसे कैसे समय कटे।
तन जलता
मन बहुत मचलता
दिन निकले कैसे
शुष्क नदी में
मीन तड़पती
बिन पानी जैसे
ताल तलैया सूख गए हैं
पोखर सब सिमटे।
अंगिया उमसे
बिस्तर चुभता
तन तरबतर हुआ
कहाँ जायें है पीछे खाई
आगे मुआं कुआं
सब सोलह शृंगार व्यर्थ ही
टप टप टप टपके।
कैसे कैसे समय कटे।
--डॉ. रमा द्विवेदी
आज की स्तिथि का सच्चा चित्रण करती रचना...गर्मी किसी आतंकवादी से कम नहीं लग रही अभी...पता नहीं इस बार बरसात को क्या हुआ है...
जवाब देंहटाएंनीरज
तन जलता
जवाब देंहटाएंमन बहुत मचलता
दिन निकले कैसे
शुष्क नदी में
मीन तड़पती
बिन पानी जैसे
ताल तलैया सूख गए हैं
पोखर सब सिमटे।
sunder pravaah
Vah
जवाब देंहटाएंजानलेवा गर्मी से
जवाब देंहटाएंजमकर शिकायत की है :)
इस नव गीत मेँ -
प्रयास पसँद आया
- लावण्या
लोकगीत शैली पर आधारित इस गीत में कुछ नवीन प्रयोगों से नवगीत की दस्तक स्पष्ट सुनाई देती है.।
जवाब देंहटाएंbahut khoob sir...bahut achha likha hai aapne
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