जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
प्यासी हवा हाँफती
फिर-फिर पानी खोज रही
सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी
बानी खोज रही
नीम द्वार का, छाया खोजे
पीपल गाछ तलाशे
नदी खोजती धार
कूल कब से बैठे हैं प्यासे
पानी-पानी रटे
रात-दिन, ऐसा ताल हुआ।
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।।
सूने-सूने राह, हाट, वन
सब कुछ सूना-सूना
बढ़ता जाता और दिनो-दिन
तेज धूप का दूना
धरती व्याकुल, अम्बर व्याकुल
व्याकुल ताल-तलैया
पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल
व्याकुल बछड़ा गैया
अब तो आस तुझी से बादल
क्यों कंगाल हुआ।
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।।
--डॉ. जगदीश व्योम
सूरज इतना लाल हुआ।
प्यासी हवा हाँफती
फिर-फिर पानी खोज रही
सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी
बानी खोज रही
नीम द्वार का, छाया खोजे
पीपल गाछ तलाशे
नदी खोजती धार
कूल कब से बैठे हैं प्यासे
पानी-पानी रटे
रात-दिन, ऐसा ताल हुआ।
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।।
सूने-सूने राह, हाट, वन
सब कुछ सूना-सूना
बढ़ता जाता और दिनो-दिन
तेज धूप का दूना
धरती व्याकुल, अम्बर व्याकुल
व्याकुल ताल-तलैया
पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल
व्याकुल बछड़ा गैया
अब तो आस तुझी से बादल
क्यों कंगाल हुआ।
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।।
--डॉ. जगदीश व्योम
हरेक चीज बडी तेजी से बद्ल रहा है .........आप ने बिल्कुल सही सवाल किया है इसका कारण हम ही है और कोई नही है .......
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत नये बिम्बों के साथ. रचनाकार को बहुत-बहुत बधाइयां.
जवाब देंहटाएंप्यासी हवा हाँफती
नीम द्वार का, छाया खोजे
पीपल गाछ तलाशे
पानी-पानी रटे
रात-दिन, ऐसा ताल हुआ।
आस तुझी से बादल
क्यों कंगाल हुआ।
ये नये प्रयोग अच्छे लगे.
हां दूसरा अंतरा कहन की द्रष्टि से पहले जितना वज़नी नहीं है. अभी मेहनत मांग रहा है.
इस नवगीत मेँ
जवाब देंहटाएंरवानी अच्छी बन पडी है -
पसँद आया
"सूरज जो लाल हुआ "
बहुत सुन्दर नवगीत। बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएं---
गुलाबी कोंपलें
विगत कुछ दिनों से अनुपस्थित रहा पाठशाला से। मन की हालत ठीक सी नहीं थी...
जवाब देंहटाएंएक और अद्भुत गीत...कुभ बेहद ही खूबसूरत बिम्ब।
मेरे गीत में प्रयुक्त शब्द "ससरती" पे कुछ टिप्पणी थी। दरअसल हमारे मिथिलांचल में "ससरना’ एक बड़ा ही आम शब्द है। साँप का ससरना, गेंहूँ की बालियों का ससरना...और हवा ससरती बहती है। इसे स-सर-ना उच्चरित करते हैं। फिर गुरूजन कहेंगे तो मैं बदल दूँगा इसे।
अत्यन्त सुन्दर नवगीत । नवगीत की सभी कसौटियों पर खरा उतरने वाला यह गीत कथ्य और लय की नवीनता से आकर्षित करने वाला है।
जवाब देंहटाएंप्यासी हवा हाँफती
फिर-फिर पानी खोज रही
सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी
बानी खोज रही
जैसे अच्छे प्रयोगों से सजा यह गीत पूर्ण परिपक्व नवगीत की श्रेणी में आता है ।
एक और सुंदर नवगीत गर्मी की व्याकुल प्रकृति का चित्रण करता हुआ। जाने क्या हो गया कि सूरज इतना लाल हुआ... स्थाई की इन पंक्तियों का अंतरे के साथ बढ़िया जोड़ मिला है। बधाई
जवाब देंहटाएं--पूर्णिमा वर्मन
bahut mastee se likhaa gayaa navgeet hai. naye bimb hai aur bahut kuchh twarit kavitaa jaisaa hai
जवाब देंहटाएंएक तो सूरज लाल हुआ,फिर बादल भी कंगाल हो गया,कोकिल व्याकुल हो कर अपनी ही मीठी वाणी खोजने लगी, पानी ढूँढ़्ती हुई हवा भी हाँफने लगी --जाने क्या बात है ? तेज़ धूप और भीष्म गर्मी से विकल हुए पूरे चराचर जगत का सजीव चित्रण है इस रचना में । बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा
बहुत अच्छा नवगीत, नये बिम्ब और पूरी रवानी के साथ लिखा गया।
जवाब देंहटाएंपसन्द आया,
एक अच्छा नवगीत है। "सूखे कंठ कोकिला मीठी वानी खोज रही" में कोकिला का सम्बंध मीठी वाणी से बताया गया है। यह तथ्य विरुद्ध काव्यदोष है। नर कोकिल ही मीठी वानी बोल सकता है मादा का स्वर तो बहुत कर्कश होता है। एक अच्छे नवगीत में इसका भी ध्यान रखना आवश्यक है।
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