13 जुलाई 2009

३- एक गाँव में देखा मैंने

एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर
अधनंगा था, बच्‍चे नंगे,
खेल रहे थे मिटिया पर

मैंने पूछा कैसे जीते
वो बोला सुख हैं सारे
बस कपड़े की इक जोड़ी है
एक समय की रोटी है
मेरे जीवन में मुझको तो
अन्‍न मिला है मुठिया भर
एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर।

दो मुर्गी थी चार बकरियां
इक थाली इक लोटा था
कच्‍चा चूल्‍हा धूआँ भरता
खिड़की ना वातायन था
एक ओढ़नी पहने धरणी
बरखा टपके कुटिया पर
एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर।

लाखों की कोठी थी मेरी
तन पर सुंदर साड़ी थी
काजू, मेवा सब ही सस्‍ते
भूख कभी ना लगती थी
दुख कितना मेरे जीवन में
खोज रही थी मथिया पर
एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर।

--डॉ. श्रीमती अजित गुप्ता

13 टिप्‍पणियां:

  1. रचना की शास्त्रीयता के विषय में तो विशेषज्ञ राय देंगे ही मुझे अपनी दृष्टि रचना अच्छी लगी। ’सन्तोषम्‌ परमम्‌ सुखम्‌’ और सम्पन्नता के विरोधाभासों को रेखांकित करती हुई।
    एक ओढ़नी पहने धरणी
    बरखा टपके कुटिया पर

    दुख कितना मेरे जीवन में
    खोज रही थी मथिया पर

    बधाई!
    मथिया शब्द से अनभिज्ञ हूँ। अर्थ जानना चाहूँगा।

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  2. ye geet to pahale hi http://ajit09.blogspot.com/ par prakashit ho chukaa hai.

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  3. अदभुत सम्वेदनशीलता भरा ये गीत सुविधा से परे सन्तोष की महिमा का गान करता है.
    मैंने पूछा कैसे जीते
    वो बोला सुख हैं सारे
    बस कपड़े की इक जोड़ी है
    एक समय की रोटी है
    ये बहुत पसन्द आया.
    आत्म प्रकाश शुक्ल लिख्ते है -
    कोई राज भवन मे़ रोए, कोई पर्ण कुटी मे़ सोये
    सुख ना रज भवन मे़ है ना पर्ण कुटी मे़ है वो केवल सन्तोष मे़ है.

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  4. mere vichar se Mathia ka arth "FORHEAD" (matha) se hai.

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  5. geet to bahut achchha hai nai soch hai naye shbd hai naye bimb bhi hai yahi to geet ko sunder banate hain .isi liye ye sunder hain .baki to mujhe kyada pata nahi hai
    mujhe bahut achchha laga
    saader
    rachana

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  6. अच्छी रचना है। मुझे तो कोई कमी नहीं दिख रही है। ज्ञानी लोग ही बता पायेंगे। मुझे अच्छा लगा।
    रचनाकार को बधाई हो।

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  7. कथ्य और लय की दृष्टि से उत्तम इस गीत में भाषा की सहजता देखते ही बनती है।सरल भाषा में कठिन बात कह देना सचमुच बहुत मुश्किल होता है जो इस गीतकार से सीखना चाहिये

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  8. लोकतत्व तथा आँचलिक शब्दों से समाहित यह रचना पाठक को सच्चे सुख की पहचान कराती है ।
    धन्यवाद सुन्दर नवगीत के लिये।

    शशि पाधा

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  9. एक अद्‍भुत गीत....कुछ लाजवाब काफ़ियों ने गज़ब की सुंदरता ला दी है गीत में।

    वैसे ऊपर एक अनाम टिप्पणी में कही गयी बात कि ये गीत पहले ही किसी ब्लौग पर आ चुका है और इससे पहले भी एक गीत पर ये बात हो चुकी थी.....पाठक यकीनन जानना चाहेंगे पूरी बात!

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  10. जैसे ही यह गीत रचा गया, मन ने कहा कि इसे अपने ब्‍लाग पर भी लगा दो, बस लगा दिया। यदि नियम के अनुसार यह गलत है तो क्षमा चाहती हूँ, भविष्‍य में ध्‍यान रखा जाएगा।

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  11. नवगीत पहले पढा था
    तब भी
    बहुत पसँद आया था -
    - लावण्या

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  12. यह गीत अच्छा है पर पहले भी पढ़ा है पर तब भी पसंद आया था बधाई

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  13. इस सुन्दर रचना हेतु टिप्पणि पहले ही ब्लॉग पर दे चुका हूँ. एक सुन्दर और प्रभावी रचना है. नव गीत है या नहीं विशेषज्ञ जानें.

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