24 जुलाई 2009

७ सुख दुख दो पाट नदी के

सुख दुख दोनों जीवन में
दो पाट नदी के,,,,,,

ग्रीष्म ॠतु की सूर्य तपन को सहना है
नेह नीर थोड़ा है फिर भी रहना है
थोड़े ही दिन के दिन हैं
दिन त्रासदी के,,,,

वर्षा आयेगी हर्षा कर जायेगी
हरियाली भी खुशहाली दे जायेगी
आँखों में सपने नाचेंगे
सप्तपदी के

माना ठिठुरन रण प्रांगण में लाशें हैं
फिर भी कुछ तो इनमें जीवित सांसें हैं
जो हाथों में रहती
नेकी और बदी के,,,,,

--गिरि मोहन गुरु

3 टिप्‍पणियां:

  1. nadi ke do paat aur sukh dukh ka saMbaNdh ??dono ka milan nahi hota nadi ke sookh jane tak aur jeevan samaPti ke baad sukh dukh ka arth nahi rah jata aur dono bhav bhi smamanaNter nahi rahte hridya mein....dusri aur saPtpadi ka arth bhi samajh nahi aaya shayad kavi ki bhavnaoN tak pahuNch nahi payi

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  2. सुंदर काफ़ियों का प्रयोग...

    आखिरी अंतरा उलझा गया है...

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  3. यह निश्चित रूप से एक अच्छा नवगीत है।

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