सुख की नैया मद्धम डोले
दुख छिप कर अपना मुख खोले
सुख दुख दो पहिए जीवन के
इक बहके तो दूजा टोके
अलग अलग न पार लगे
साथ चले दोऊ हौले-हौले
सुख की नैया मद्धम डोले
दुख छिप कर अपना मुख खोले
दिवस बिना रैना न चमके
एक ढ़ले तो दूजा दमके
उजियारा अंधियारा पाख
इक जागे जब दूजा सोले
सुख की नैया मद्धम डोले
दुख छिप कर अपना मुख खोले
--पारुल पुखराज
behad hi khubsorat geet hai ......aapko isake liye bahut sari shubh kaamnaye .......atisundar
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