31 जुलाई 2009

११- मन विचलित मत हो जाना

मन विचलित मत हो जाना, थोड़ा खुद को समझाना।
संकट आते जाते हैं, संकट में क्या घबराना।

कदम-कदम पर रोड़े हैं, कुछ ज्यादा कुछ थोड़े हैं।
आगे बढ़ने वालों ने, पर्वत पीछे छोड़े हैं।
कदमों में होंगी मंज़िल, कदम-कदम बढ़ते जाना।
मन विचलित मत हो जाना, थोड़ा खुद को समझाना।

राह नहीं सूझे कोई, चारों तरफ अंधेरा है।
लेकिन यह सच है यारो, जागे तभी सवेरा है।
चेतनता सोई दिन में इसको ज़रा जगा जाना।
मन विचलित मत हो जाना, थोड़ा खुद को समझाना।

बैठ गया जो डर मन में, मन के हारे हार गया।
हिम्मत के बल पर कोई, मंझधारों के पार गया।
सागर के सीने पर तुम, विजय पताका फहराना।
मन विचलित मत हो जाना, थोड़ा खुद को समझाना।

सबको अल्ली-पल्ली है, किसको कहॉं तसल्ली है।
कोई आगे निकल गया, कोई रहा पिछल्ली है।
खरगोशों से मत डरना, कछुआ से चलते जाना।
मन विचलित मत हो जाना, थोड़ा खुद को समझाना।

पुष्पेन्द्र शरण पुष्प

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