31 जुलाई 2009

१२- सुख दुःख जीवन में

मन में उठते
भावनओं के तरंगो की तरह
आते ही रहते है
सुख दुःख जीवन में .

दिवस के साथ
धुप छाव का खेल
खेलते ही रहते है
सुख दुःख जीवन में .

संबंधो में खास
अपने और पराये की बात
बताते ही रहते है
सुख दुःख जीवन में .

संतोष की तलाश
कभी तृप्ति कभी त्रास
अमृत बरसते ही रहते है
सुख दुःख जीवन में,

जीवन संगीत के
लय पर
कदम थिरकाते ही रहते है
सुख दुःख जीवन में ,

नयनों में सजे सपनो में
कल्पना और हकीकत के
चलचित्र दिखाते ही रहते है
सुख दुःख जीवन में ,

प्रति पल जिंदगी के
जीवंतता का एहसास
कराते ही रहते है
सुख दुःख जीवन में .

अपराजिता

1 टिप्पणी:

  1. गीत अच्‍छा है लेकिन नवगीत की कसौटी पर इसे कैसे परखा जाए यह तो गीत प्रकाशित करने वाले ही बता सकते हैं । गीत सुख और दु:ख दर्शाता है और घटनाओं को सामने रखता है, गीत मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत है ।

    गीत की प्रारंभिक पंक्ति में कुछ गड़बड़ है, 'मन में उठते भावनाओं के तरंगों की तरह' के स्‍थान पर 'मन में उठती भावनाओं की तरंगों की तरह' होना चाहिए था ।

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