31 जुलाई 2009

१४- अजन्मा

मैं तेरी माँ हूं,
शिशु अजन्मे!
माँ-एक सम्बंध
जो होता है पर्याय
अपने वंश -वर्धन का
संपूर्ण अध्याय
दयाका, करुणा का,
समर्पण का।

वही माँ,
आज रोकती है
तेरा आगमन धरा पर
चाहती है ,
तेरा अकाल अवसान
रूप रखती देह का
होना निष्प्राण
त्राण -
जन्मोत्तर दुःख की छाया से
पल -पल ,सांसों को तरसती
कष्ट-काया से
क्योंकि ,तू- मेरे अजन्मे!
मात्र देहाकर्षण की
फलोत्पत्ति नहीं है
मेरा अनिर्वचनीय सुख है
मात्र संपत्ति नही है।
मेरी साधना का
चरम प्रसाद है तू,
मेरी भावना का
आह्लाद है तू,
तेरी निरोगी काया
मेरा अभीष्ट है।
जन्मोपरांत ,
वही इच्छित है, ईष्ट है।

मेरी कोख मे तेरा निर्माण
तेरी माँ की यग्य साधना है।
क़ानून नियम नहीं
आराधना है।
अतः,यह माँ
विरोध करती है
आरोपित नियम का।
त्याग करती है
गर्भनिर्मित रोगी काया के
संवर्धन का।
नहीं स्वीकार्य
जन्मोपरांत,
हर पल तेरी मृत्यु
सुख-श्वांस को तरसता
तेरा शैशव ,
तेरा यौवन,
तेरी आयु।

अतः-
न नियम ,न समाधान
गर्भस्थ, अर्ध-निर्मित,
दोष-रोग युक्त
काया का अवसान।
क्योंकि ,
शिशु अजन्मे!
मैं तेरी माँ हूं ।

--प्रवीण पंडित

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रवीण भाई, भावी जीवन के कष्टो़ से घबराकर एक मा़ गर्भपात कराना चाह्ती है ये किसी तरह से उचित नही लगता. अगर सोनोग्राफ़ी ने ये बता दिया है कि शिशु निरोगी नही है तो क्या ऐसे ही हम दुनिया से रोगी बच्चो, बडे और बूढो़ को इसीलिये मौत के घाट उतार दे़ कि वो निरोगी नही़ है. नवगीत है या नही़ ये पारखी जाने़ लेकिन विषय से पूरी तरह भटकाव है.

    अगर इसे व्यन्ग माने़ तो ऊपर मा़ को इत्ना महिमा मन्डित कर्ने की क्या जरूरत थी.

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  2. कुछ समझ में नहीं आया। कवि जी कहना क्या चाहते हैं। विकृत गर्भस्थ शिशु को मृत्युदण्ड क्योंकि वह विरोध नहीं कर सकता जबकि विकृत मानसिकता को राजदण्ड (राजसत्ता) क्योंकि हम उसका विरोध नहीं कर सकते।
    भ्रमित हूँ कि नवगीत भी है या नहीं। मैं इसके बारे में कम जानता हूँ।
    सद्भाव सहित
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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