14 अगस्त 2009

कार्यशाला-४


बहुत दिनों से आलेख का मौसम है। सदस्यों ने बहुत कुछ नया पढ़ा-गुना है और प्रतिक्रियाओं से लगता है कि सब कार्यशाला के लिए तरसने लगे हैं तो अगली कार्यशाला का विषय यहाँ प्रस्तुत है- इस बार एक वाक्यांश को नवगीत में लाना है- बिखरा पड़ा है।

यह पंक्ति मुखड़े में हो, पूरी पंक्ति इन्हीं शब्दों की हो या बार बार इन शब्दों की आवृत्ति हो यह ज़रूरी नहीं। पूरे नवगीत में कहीं एक स्थान पर ये हों तो भी ठीक है।

क्या बिखरा पड़ा है वह सदस्य रचनाकारों को अपने आप सोचना है। सामान बिखरा पड़ा है, घर बिखरा पड़ा है, दिन बिखरा पड़ा है या कुछ और...। देखें कल्पना और रचनाशीलता रचनाकारों को कहाँ-कहाँ तक ले जाती है। नवगीत दो तीन अंतरों से अधिक लंबा न हो।

रचना भेजने की अंतिम तिथि हैं 30 अगस्त 2009। पता है- navgeetkipathshala(at)gmail.com

6 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी समझ से ये आलेख बहुत आवश्यक थे। इनसे कई जानकारियाँ मिली जिससे मेरा इस दिशा में पर्याप्त ज्ञानवर्द्धन भी हुआ। आशा करता हूँ इस बार अच्छे नवगीत देखने को मिलेंगे।

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  2. यह जानकर ख़ुशी हुई कि कार्यशाला फिर शुरू हो रही है। अच्छे गीत अवश्य आयेंगे। साथ ही आशा करता हूँ कि कटारे साहब, डॉ. व्योम, पुर्णिमा जी, भाई अनाम और श्री संजीव गौतम के साथ-साथ और भी विद्वानों की टिप्प्णियां हर गीत पर देखने को मिलेंगी जिसकी हर सीखने वाले को ज़रूरत है। गुड लक।

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  3. बहुत दिनों से प्रतीक्षा थी नवगीत में नई कार्यशाला की , नवगीत के लिए शब्द भी अच्छे दिए
    नए नए गीत पढ़ने को मिलेंगे, बधाई एवम शुभकामना
    धन्यवाद

    विमल कुमार हेडा

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  4. एक रचना इस बार हमने भी भेजी है, अगर लोगो को पसंद आ जाये तो शायद लिखना सार्थक हो जाये...
    मीत

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