कैसे बीनूँ , कहाँ सहेजूँ
बाँध पिटारी किसको भेजूँ
मन क्यों इतना बिखरा पड़ा है?
खोल अटरिया काग बुलाऊँ
पूछूँ क्या संदेसा कोई?
बीच डगरिया नैन बिछाऊँ
पाहुन का अंदेसा कोई?
कैसे बंदनवार सजाऊँ
देहरी-आँगन बिखरा पड़ा है।
कोकिल गाए, आस बँधाए
भीनी पुरवा गले लगाए
किरणें छू कर अँग निखारें
रजनी गन्धा अलक बँधाए
कैसे सूनी माँग संवारूँ
कुँकुम-चन्दन बिखरा पड़ा है।
इक तो छाई रात घनेरी
दूजे बदरा बरस रहे
थर-थर काँपे देह की बाती
प्रहरी नयना तरस रहे
कैसे निंदिया आन समाए
पलकन अंजन बिखरा पड़ा है।
--शशि पाधा
सुन्दर काव्य है
जवाब देंहटाएंअच्छा गीत है! बधाई! पारम्परिक प्रतीकों का प्रयोग सुन्दर ढंग से किया गया है। एक शंका है इस पांक्ति में
जवाब देंहटाएंकैसे बंधनवार सजाऊँ
शब्द बंधनवार है या बंदनवार या वंदनवार?
खोल अटरिया काग बुलाऊँ
जवाब देंहटाएंपूछूँ क्या संदेसा कोई ?
बीच डगरिया नैन बिछाऊँ
पाहुन का अंदेसा कोई ?
कैसे बंधनवार सजाऊँ
देहरी-आँगन बिखरा पड़ा है ।
वाह क्या सुन्दर पंक्योतियो की रचना की है , बहुत बहुत बधाई
धन्याद
विमल कुमार हेडा
atyant sundar.....
जवाब देंहटाएंअमित जी,
जवाब देंहटाएंध्यान दिलाने के लिये बहुत आभारी हूँ । शब्द "बंदनवार" है ।
बंदनवार सजाऊँ ।
पूर्णिमा जी,
आपसे अनुरोध है कि आप मेरी रचना में यह शब्द बदल दें ।
सधन्यवाद,
शशि पाधा
अच्छा नवगीत लिखा है शशि जी। विरह और इंतज़ार के भावों को शब्दों का बेहतरीन लिबास दिया है। मुझे काफी पसंद आया। आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंsundar pravaah aur bhavoN ki achchhi abhivyakti
जवाब देंहटाएंकैसे बंदनवार सजाऊँ
जवाब देंहटाएंदेहरी-आँगन बिखरा पड़ा है।
वाह शशी जी क्या लखिा है आपने बहुत सुंदर दिल में गहरे उतर गया...
मीत
बहुत सुन्दर नवगीत है।लय और गेयता भी सधी हुई है किन्तु बिखरा पड़ा है के चक्कर में इस गीत के सभी अन्तरों में एक मात्रा बढ गई है जो व्यवधान उत्पन्न कर रही है। यहाँ बिखरा बिखरा कर देने से सब ठीक हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सुंदर रचना। ढेर सी बधाई!
जवाब देंहटाएंशशि जी हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंकोकिल गाए, आस बँधाए
भीनी पुरवा गले लगाए
किरणें छू कर अँग निखारें
रजनी गन्धा अलक बँधाए
कैसे सूनी माँग संवारूँ
कुँकुम-चन्दन बिखरा पड़ा है।
बहुत -बहुत बधाई.
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसभी प्रतीक बहुत नये, बहुत अच्छे और अंतस को छू गये।
शास्त्री जी की बात ने समुचित ध्यान खींचा।
सस्नेह
प्रवीण पंडित
कुछ बेहद ही सुंदर प्रतिकों से सजा नवगीत..
जवाब देंहटाएं"प्रहरी नैना" के प्रयोग ने मन-मोह लिया।
शशि पाधा जी को बधाई एक सुंदर गीत के लिये।