1 दिसंबर 2009

१४- दीप घर के

दीप घर के ही जलाते रहे
घर अक्सर

आँख में विश्वास की
देकर चमक
नमक खाकर न
निभा पाये नमक
प्यार से निज अंक लेते
और देते पर कतर

किरण की सौगन्ध खाते
तम उगल
जिन्दगी को मानते
केवल शगल
भाईचारा को समझ चारा
चतुर बनकर रहे चर

--अखिलेश गुरु

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