सूना-सूना घर का द्वार
मना रहे
कैसा त्यौहार?
भौजाई के बोल नहीं
बजते ढोलक - ढोल नहीं
नहीं अल्पना-रांगोली
खाली रिश्तों की झोली
पूछ रहे: ''हाऊ यू आर?''
मना रहे
कैसा त्यौहार?
*
माटी का दीपक गुमसुम
चौक न डाल रहे हम - तुम
सज्जित हुआ विदेशी माल
कुटिया है बेबस-बेहाल
श्रमजीवी रोता बेजार
मना रहे
कैसा त्यौहार?
*
हेलो!, हाय!! मोबाइल ने
हमें न गले दिया मिलने
नातों को जीता छल ने
लगी चाँदनी चुप ढलने
'सलिल' न प्रवाहित नेह-बयार.
मना रहे
कैसा त्यौहार?
--संजीव सलिल
अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव बहुत सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई धन्वाद
जवाब देंहटाएंविमल कुमार हेडा
achcha geet hai badhai
जवाब देंहटाएंसुन्दर कथ्य युक्त, सधी लय वाला एक अच्छा नवगीत।
जवाब देंहटाएंsaamayik vyatha ka sarthak chitran hua hai is navgeet me. badhai!
जवाब देंहटाएं"Soona-soona hgar ka dwar
जवाब देंहटाएंmana rahe
kaisa tyohar"
Bahut khoob salilji
Apki anubhuti meri apni anubhoti pratit hui.navgget ke manch par anubhootiyon ka yeh samagam yon hi jari rahe yahi kamna hai hai.beshak,sunder lay kathya me spastata v aviral pravah ka bejod sangam hai apka navgeet
dhanyavad
jan maanas ko sahaj chhune vala navgeet
जवाब देंहटाएं