मन कुहासे से घिरा दिनमान
खोता जा रहा पहचान
शून्य वन में राह भूले पथिक सी
लाचार मानवता
सभ्यता के मंच पर अध्यक्ष हित
तैयार दानवता
बुद्धिवादी सिर फिरा इन्सान
होता जा रहा पाषाण
साँझ सूने घाट पर बैठा हुआ
धीवर बना मानव
मछलियों को फाँसने को ढूँढता
तरकीब बन दानव
सिर्फ पाने के लिये सम्मान
खोता जा रहा ईमान
--गिरिमोहन गुरु
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
जवाब देंहटाएं-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
बहुत अच्छे भाव।
जवाब देंहटाएंachchi rachna hai badhai
जवाब देंहटाएंनवगीतों को सजीवता प्रदान करती एक सजीव कार्यशाला है - नवगीत की पाठशाला!
जवाब देंहटाएंनए वर्ष पर मधु-मुस्कान खिलानेवाली शुभकामनाएँ!
सही संयुक्ताक्षर "श्रृ" या "शृ"
FONT लिखने के चौबीस ढंग
संपादक : "सरस पायस"
सरस नव गीत हेतु बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा नवगीत और विशेष ये पंक्तियां,,,,
जवाब देंहटाएंशून्य वन में राह भूले पथिक सी
लाचार मानवता
सभ्यता के मंच पर अध्यक्ष हित
तैयार दानवता
बुद्धिवादी सिर फिरा इन्सान
होता जा रहा पाषाण
बहुत अच्छा नवगीत है। गिरिमोहन गुरु जी के सभी गीत शानदार रहे हैं अभी तक बधाई।
जवाब देंहटाएंमन कुहासे से घिरा दिनमान
जवाब देंहटाएंबुद्धिवादी सिर फिरा इन्सान
होता जा रहा पाषाण
सिर्फ पाने के लिये सम्मान
खोता जा रहा ईमान
सत्य कथन है. Thank you.