झुरमट में सूरज छुप जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए
ओढ़ कर रज़ाई अंधेरा
टोकनी में दुबक जाए
मेंढक टर्र, टर्र करे जब
चन्दा ताल में छुप जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए
बदली जब धरा पर उतरे
दुशाला पहन फुदकती जाए
नींद से उठे गौरैया
दिवस को रात समझ जाए
साझं कुहासा घिर घिर आए
पगली बदली के पाहुन
गुलाब से ओस चुरा लाए
रात मे ठंडी और नम सी
मेरे तलवे से लिपट जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए
नीम की झुकी लदी डाली
मुँडेर पर ओस बिखराए
पुनीत आस सीढ़ी पर
विनीत दुआ से झुक जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए।
--रजनी भार्गव
एक सुन्दर रचना के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
अन्तरों में कुछ संशोधन की आवश्कता है जैसे,,,
जवाब देंहटाएंओढ़ रज़ाई घना अंधेरा
डाल टोकनी अपना डेरा
मेंढक टर्र, टर्र करते जब
मुश्किल से तब हुआ सबेरा
चाँद ताल में छुप छुप जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए
कटारे जी आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिये धन्यवाद। आभार सहित,
जवाब देंहटाएंरजनी
अवनीश जी धन्यवाद।
झुरमट में सूरज छुप जाए
जवाब देंहटाएंसांझ कुहासा घिर घिर आए
true.very nice.
पगली बदली के पाहुन
जवाब देंहटाएंगुलाब से ओस चुरा लाए
रात मे ठंडी और नम सी
मेरे तलवे से लिपट जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए
बढ़िया लगी ये पंक्तियाँ
दीपिका जोशी'संध्या'