सच्चाई की सड़क पर,
है झूठ का कुहासा।
स्वार्थों की ठंढ बढ़ती
ही जा रही है हर-पल,
परहित का ताप सोया
ओढ़े सुखों का कम्बल;
हैं प्रेम के सब उपले
अब दे रहे धुँआ-सा।
सब मर्सिडीज भागें
पैसों की रोशनी में,
ईमान-दीप वाले,
डगमगाती तरी में;
बढ़ती ही जा रही है,
अच्छाई की हताशा।
घुट रहा धर्म दबकर
पाखंड की बरफ से,
तिस पर सियासतों की
आँधियाँ हर तरफ से;
कुहरा बढ़ा रही है,
नफरत की कर्मनाशा।
पछुआ हवा ने पाला
ऐसा गिराया सबपर,
रिश्तों के खेत सारे
अब हो गये हैं बंजर;
आयेंगी गर्मियाँ फिर,
है व्यर्थ अब ये आशा।
-धर्मेन्द्र कुमार सिंह ’सज्जन’
इस रचना ने मन मोह लिया।
जवाब देंहटाएंनवगीत की दृष्टि से हो सकता है कि कुछ कमियाँ यहाँ वहाँ रह गयी हों लेकिन ये पंक्तियाँ बेमिसाल हैं-पछुआ हवा ने पाला
जवाब देंहटाएंऐसा गिराया सबपर,
रिश्तों के खेत सारे
अब हो गये हैं बंजर;
आयेंगी गर्मियाँ फिर,
है व्यर्थ अब ये आशा।
घुट रहा धर्म दबकर
जवाब देंहटाएंपाखंड की बरफ से,
तिस पर सियासतों की
आँधियाँ हर तरफ से;
कुहरा बढ़ा रही है,
नफरत की कर्मनाशा।...
बढ़ती ही जा रही है,
अच्छाई की हताशा।
:-
true.यतार्थ चित्रण !
एक और अच्छा नवगीत प्रकाशित हुआ है - इस ब्लॉग पर!
जवाब देंहटाएंओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
पछुआ हवा ने पाला
जवाब देंहटाएंऐसा गिराया सबपर,
रिश्तों के खेत सारे
अब हो गये हैं बंजर;
आयेंगी गर्मियाँ फिर,
है व्यर्थ अब ये आशा।
एक कड़ुवा सत्य हैं यह पंक्त्तियाँ । बहुत सार गर्भित रचना। धन्यवाद।
शशि पाधा
धर्मेन्द्र जी थोड़े से परिवर्तन के साथ कुछ इस तरह कहें तो बहुत सुन्दर होगा यह नवगीत।
जवाब देंहटाएंसत्य की सड़क पर है,
झूठ का कुहासा
छटने की आशा ,,,,,
स्वार्थों की ठंढ बढी
ठिठुराती हर-पल,
परहित का ताप सुप्त
ओढ़े सुख कम्बल;
सब उपले प्रेम के
दे रहे धुँआ-सा।
धर्मेन्द्र जी थोड़े से परिवर्तन के साथ कुछ इस तरह कहें तो बहुत सुन्दर होगा यह नवगीत।
जवाब देंहटाएंसत्य की सड़क पर है,
झूठ का कुहासा
छटने की आशा ,,,,,
स्वार्थों की ठंढ बढी
ठिठुराती हर-पल,
परहित का ताप सुप्त
ओढ़े सुख कम्बल;
सब उपले प्रेम के
दे रहे धुँआ-सा।
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसच्चाई की सड़क पर,
जवाब देंहटाएंहै झूठ का कुहासा।
आज की सच्चाई का सच्चा दर्शन गीत के माध्यम से...बहुत अच्छा लगा...
दीपिका जोशी'संध्या'