रात चाँदनी, भोर किरन तक
जगाता रहता कोहरा
शरद अब गुजर चुका
ठण्ड पुट छोड़ चुका
हेमंत ने आवाज लगाई
धरती ने ली अंगड़ाई
पत्ता - पत्ता सिहर उठा
परिंदा - परिंदा ठिठक उठा
शीतलता से निखर
खिलता रहता हर चेहरा
रात चांदनी भोर किरन तक
जगाता रहता कोहरा
क्रिसमस की शाम है आयी
संता क्लोज ने धूम मचाई
संक्रान्ती की सुबह सुहायी
शुभ मुहूर्तों की बेला लायी
बीत रहा यह सफल बरस
आ रहा साल सुनहरा
रात चांदनी , भोर किरन तक
जगाता रहता कोहरा
--अवनीश तिवारी
रात चाँदनी,
जवाब देंहटाएंभोर किरन तक
रहा जगाता कोहरा!
कोहरे में से
निकल-निकलकर
हुआ कोहरा दोहरा!
--
लगी झूमने फिर खेतों में,
कोहरे में भोर हुई!
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंरात चांदनी भोर किरन तक
जवाब देंहटाएंजगाता रहता कोहरा
अति उत्तम!
congrats.
रात चांदनी , भोर किरन तक
जवाब देंहटाएंजगाता रहता कोहरा
क्या खूब.... बढ़िया
दीपिका जोशी'संध्या'
अच्छा प्रयास पर लय की कमी लगी.
जवाब देंहटाएंकोहरे में से
जवाब देंहटाएंनिकल-निकलकर
हुआ कोहरा दोहरा!
सुन्दर
हेमन्त का आवाज़ लगाना और धरती का अँगड़ाई लेना,पत्तों का सिहरना, परिन्दों का ठिठकना सभी बिम्बों में मोहक शब्द चित्रण है। सुन्दर रचना के लिये बधाई तथा धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा