सर्दी में
सूरज की गुम हुई गरमाई
कोहरे की चादर ली
धुंध की रजाई
जाड़ा है पाला है
हल्की-सी दुशाला है
छुट्टी का नाम नहीं खुली पाठशाला है
सुबह-सुबह उठने में कष्ट बहुत भारी
और सजा की जैसी
लगती है पढ़ाई
सब कुछ है
धुँधला-सा गीला-सा सब
नाक कान मुँह ढाँके लगते सब अजब
धुआँ-धुआँ आता है जब भी कुछ बोलो
चुप रहना आता नहीं
क्या करें हम भाई
धूप की धमक पर
लग गया ग्रहण कोई
चंदा भी चुप होकर कर रहा है प्रण कोई
तारे अब आते नहीं शायद ननिहाल गए
जाने कब आएगी वसन्त
लिए पुरवाई
--सिद्धेश्वर सिंह
धुआँ-धुआँ आता है जब भी कुछ बोलो
जवाब देंहटाएंचुप रहना आता नहीं
क्या करें हम भाई
वाह बहुत खूब अभी तक किसी रचनाकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था यानि सर्दी में मुँह से निकलने वाली भाप का...
जाने कब आएगी वसन्त
जवाब देंहटाएंलिए पुरवाई
-- आ गयी बसंत | कल बसंत पंचमी है , शुभ कामनाएं |
सुन्दर रचना के लिए बधाई |
अवनीश तिवारी
हाँ, सुरुचि जी की तरह मुझे भी वही पंक्तियाँ खूब अच्छी लगी। रचना में इसका प्रयोग अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंबधाई
दीपिका जोशी 'संध्या'
"तारे अब आते नहीं,
जवाब देंहटाएंशायद ननिहाल गए!"
--
इस अनूठे बिंब में मुझे अपना ननिहाल
और नाना-नानी का स्नेह
दिखाई दे गया!
--
मैं भी कभी जाता था,
उनकी आँखों का तारा बनकर
उनके पास!
सुरुचि और
जवाब देंहटाएंसंध्या से कैसे
'सलिल' न सहमत हो.
"धूप की धमक पर
जवाब देंहटाएंलग गया ग्रहण कोई
चंदा भी चुप होकर कर रहा है प्रण कोई
तारे अब आते नहीं शायद ननिहाल गए
जाने कब आएगी वसन्त
लिए पुरवाई"
गहन कोहरे ने शायद प्रकृति के सभी कार्यकलाप कुछ दिनों के लिये स्थगित कर दिये थे। धूप,चाँद तारे सभी वसन्त की प्रतीक्षा मे खड़े हैं । बहुत ही सजीव कल्पना है इन पँक्त्तियों में । बहुत बहुत बधाई तथा धन्यवाद ।
शशि पाधा
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जवाब देंहटाएंधूप की धमक पर
जवाब देंहटाएंलग गया ग्रहण कोई
तारे अब आते नहीं
शायद ननिहाल गए
bahut koob.achha hai.
तारे अब आते नहीं शायद ननिहाल गए
जवाब देंहटाएंकोहरे की चादर ली
धुंध की रजाई
Badhiya hai.Thanks.