20 जनवरी 2010

२०- कोहरा यह कब हटेगा

कोहरा
यह कब हटेगा।

चल रही ठंडी हवाएँ,
हड्डियाँ तक भेद जाएँ,
भास्कर का ताप सबको बराबर
किस दिन बटेगा।
कोहरा
यह कब हटेगा।

बिक रही हैं आत्माएँ,
मिट चली हैं आस्थाएँ,
अनाचार, अन्याय, अत्याचार
का घन कब छटेगा।
कोहरा
यह कब हटेगा।

हो रहा शोषित का शोषण,
बने निर्धन और निर्धन,
दु:खी पीड़ित मानवों का किस दिवस
संकट कटेगा।
कोहरा
यह कब हटेगा।

--राकेश कौशिक

7 टिप्‍पणियां:

  1. कोहरे के माध्यम से बहुत अच्छा सामाजिक विषय प्रकाशित किया है |
    बधाई |

    अवनीश तिवारी

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  2. जब रचेंगे मीत अब हम,
    गीत कुछ बसंत पर!
    तब लगेगा कोहरा यह,
    आ गया है अंत पर!

    --
    "सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
    वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
    खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"

    --
    क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
    लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
    --
    संपादक : सरस पायस

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  3. हो रहा शोषित का शोषण,
    बने निर्धन और निर्धन,
    दु:खी पीड़ित मानवों का किस दिवस
    संकट कटेगा।
    कोहरा
    यह कब हटेगा।
    बहुत गहरे भाव लिये है आप की यह रचना
    धन्यवाद

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  4. अब कोहरा छटेगा।
    संकट कटेगा।

    बासंती बारी आई, प्रकति है मुस्काई
    भ्रमर गीत गाए नवगीत को सुनाये

    जवाब देंहटाएं
  5. सामाजिक तथा राजनैतिक विसंगतियों को कोहरे के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है इस नव गीत में। साथ ही आशा का आह्वान है । धन्यवाद।

    शशि पाधा

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