रोशनी के नए झरने
लगे धरती पर उतरने
क्षितिज के तट पर धरा है
ज्योति का जीवित घड़ा है
लगा घर-घर में नए
उल्लास का सागर उमड़ने
घना कोहरा दूर भागे
गाँव जागे, खेत जागे
पक्षियों का यूथ निकला
ज़िंदगी की खोज करने
धूप निकली, कली चटकी
चल पड़ी हर साँस अटकी
लगीं घर-दीवार पर फिर
चाह की छवियाँ उभरने
चलो, हम भी गुनगुनाएँ
हाथ की ताकत जगाएँ
खिले फूलों की किलक से
चलो, माँ की गोद भरने
--नचिकेता
चलो, हम भी गुनगुनाएँ
जवाब देंहटाएंहाथ की ताकत जगाएँ
खिले फूलों की किलक से
चलो, माँ की गोद भरने
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर |
बधाई|
अवनीश तिवारी
भाटिया जी, यह जानकर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लग रहा है कि
आप नवगीत की पाठशाला में बराबर आ रहे हैं!
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दूसरी अच्छी बात यह है कि
इस कार्यशाला में
एक से बढ़कर एक नवगीत रचे जा रहे हैं!
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यह नवगीत भी बहुत अच्छा है!
इसमें जो चाहना की गई है,
वह सुंदर होने के साथ-साथ गंभीर भी है!
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चलो, माँ की गोद भरने!
हर पंक्ति जो भी कह रही है,
वह अनोखे अंदाज़ में कह रही है!
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पक्षियों का यूथ निकला!
इस पंक्ति में "यूथ" शब्द का प्रयोग
बहुत अटपटा लग रहा है!
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शब्दों का अँगरेज़ीकरण करने से
बिंब नया नहीं हो जाता!
झुंड या युगल शब्द का प्रयोग ही अधिक प्रभावी होगा!
मन को रुचा यह नवगीत. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंवसंतागमन का संदेश देता यह नवगीत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसारे बिम्ब प्रकृति की नवछ्टा बिखेरते हैं।
सुन्दर रचना के लिये धन्यवाद ।
शशि पाधा
सुन्दर रचना हैं. thank you.
जवाब देंहटाएंनचिकेता जी का पूर्ण अनुशासित गीत बार बार पढने को मन करता है।
जवाब देंहटाएंनचिकेता जी का पूर्ण अनुशासित गीत बार बार पढने को मन करता है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत और सधा हुआ नवगीत है । काम्बोज
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