धुंध है अंधेरा है
नभ से उतर कोहरे ने
धरा को घेरा है
दुबके पाँखी
गइया गुम-सुम
फूलों से भौंरे
तितली गुम
मौसम ने मौन राग छेड़ा है
मजूर ठिठुर कर
अलाव ताप रहे
पशु पंछी पौधे
थर-थर काँप रहे
धुंधला सा आज सवेरा है
रेल रुकी
उड़ते अब विमान नहीं
फ़सलें सहमी
खेतों मे दिखते किसान नहीं
कोहरा लगा रहा फेरे पर फेरा है
सूरज की
किरन हुईं गाइब
चंदा घर जा
बैठा है साहिब
सब जगह कोहरे का डेरा है
--श्याम सखा ‘श्याम’
"मौसम ने मौन राग छेड़ा है" एक नया अन्दाज़ है कोहरे से ढकी प्रकृति का विवरण करने में ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद एक अच्छी रचना के लिये।
शशि पाधा
very nice.
जवाब देंहटाएंkya sunder varnan hai bahut khoob likha hai
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
आप सभी का आभार
जवाब देंहटाएंश्याम जी का सुन्दर नवगीत यदि" धरा को घेरा है" के स्थान पर" धरती को घेरा है" कर दें तो अधिक अच्छा होगा ।
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