16 फ़रवरी 2010
२- साँसों की डोली में : शंभु शरण मंडल
आ झूलें बाहों में तेरी,
या साँसों की डोली मे
बीत न जाए पल, ये मौसम,
यों ही आँख मिचोली में।
गीत लिखें मनमीत तुम्हारे,
होठों पे बंसी बन के,
तेरे मेरे रिश्ते जैसे
हैं दामन और चोली में।
पतझड़ की पीड़ा मिट जाए
फागुन के मरहम लगते
रंग बसंती घुल जाए जो
नैनों की रंगोली में
ओंठ हिले टेसू टपकाए
तन वीणा के तार हुए
कोयल कूके बाग बगीचे
मिसरी जैसी बोली में
रस्ता घेरे शाम सबेरे
छेड़े पागल पुरवाई
तंग करे सब संग सहेली
हरदम हँसी ठिठोली में
गाए कोई फाग जोगीड़ा
मै तो अपने श्याम की मीरा
निखरे नित जो रंग थे डाले
उसने पहली होली में
--
शंभु शरण मंडल
(धनबाद)
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कार्यशाला : ०७
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बहुत ही सुन्दर मनमोहक रचना....बधाई स्वीकारे!!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहुत सुन्दर गीत है धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंAapki kavita/geet sanson ki doli mein padha. Bahut hi achcha laga. Aap isi tarah hum sabo ko ritueyen ki yad dilaten rahen barna is jindagi ki chooha daud mein jindagi bit jayegi aur hum har rituen ka aanand bhi nahi le payenge.
जवाब देंहटाएंसहज प्रस्फुटित
जवाब देंहटाएंमन की निर्झर्णी से
निकला संगीत मन को भी
संगीतमय कर गया.....
आभार आपका..
बधाई....
गीता पंडित
मंडल साहब की यह रचना तो मन को छू गई। रचनाकम मॆं आए इस निखार के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंKya khoob likha hai ati sunder
जवाब देंहटाएंbadhai
saader
rachana
बहुत बढ़िया नवगीत है जी!
जवाब देंहटाएंइस गीत को पढ़ने के बाद
जवाब देंहटाएंमुझे ऐसा लगा -
--
साँसों की डोली में -
झूल रहा मन!
वासंती रंगों में -
डूब रहा वन!
बगिया में आई है -
महकों की टोली!
यहाँ-वहाँ बहक रही -
कोकिल की बोली!
--
कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
--
संपादक : सरस पायस
ati sundar lay v pravah me pravahit geet
जवाब देंहटाएंbadhaee ho
Really a nice thoughtprovoking geet
जवाब देंहटाएंthank you.pl keep on
अन्तर्मन को फागुन के रँगों से भिगो गई यह रचना
जवाब देंहटाएंओंठ हिले टेसू टपकाए
तन वीणा के तार हुए
कोयल कूके बाग बगीचे
मिसरी जैसी बोली में
सुन्दर परिकल्पना। बधाई तथा धन्यवाद ।
शशि पाधा
पतझड़ की पीड़ा मिट जाए
जवाब देंहटाएंफागुन के मरहम लगते
रंग बसंती घुल जाए जो
नैनों की रंगोली में
ओंठ हिले टेसू टपकाए
तन वीणा के तार हुए
कोयल कूके बाग बगीचे
मिसरी जैसी बोली में
bahut hi man-bhavan aur naveenta liye hue hai achchha laga
कविता बहुत अच्छी है, प्रेम की अभिव्यक्ति बहुत उत्कृष्ट हुई है। इसे पढ़कर किसी के भी मन में प्रेम जग सकता है। कविता बहुत स्वाभाविक है। मुझे बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंइस गीत में सुर लय ताल सभी कुछ है। मौसम का वर्णन भी सुहाना है, लोक से व्यवहार भी लिया गया है तो भी इसकी संरचना में नवगीत का छंद या शिल्प नहीं है। कुछ न कुछ नया प्रयोग, नया बिम्ब, नई कल्पना या नया छंद नवगीत के लिए ज़रूरी होता है।
जवाब देंहटाएंwah, nahut hi utkrisht rachana, mausam, younpan,alhadpan,samarpan, virah, milan...aadi jaise tamam bhavo ki behatrin prastuti iss rachana me hai.....
जवाब देंहटाएंye rachana kahi se bhi kritrim nahi lagati hai..
aapke rachana ki tarah hi aapki holi ho....
holi ki aapko hardik shubhakamanaye.
वाह...वाह...
जवाब देंहटाएंमुझको भी शामिल कर मंडल
अब तो अपनी टोली में.
बासंतीं खुशियाँ भर जाएँ
थोड़ी मेरी झोली में.
मुझको यह रचना रुची...मन को छूनेवाला गीत. नवगीत के तत्त्व न्यून होने पर भी भाया.
प्रतिक्रिया के लिए सभी सदस्यों को हार्दिक आभार
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