18 फ़रवरी 2010
४- मनुहारों के दिन : शशि पाधा
लौट आये मनुहारों के दिन
नेह की गगरी झरी-झरी
ऋतुराज छिटकाए सतरंग
धरा वासंती हरी- हरी
उड़-उड़ जाए पीत ओढ़नी
पुरवाई के पँख लगे
सरसों के पग बँधे पैंजनी
गेहूँ सारी रात जगे
बौराई बंजारन कोयल
कुहुके गाए घड़ी-घड़ी
खिला-खिला धरती का आनन
देहरी अँगना धूप धुले
महुआ- टेसू गंध बिखेरें
लहर-लहर अनुराग घुले
ओस कणों में हँसती किरणें
हीरक कणियाँ लड़ी-लड़ी
नयन ताल में रूप निहारे
पाहुन से जब बात करे
चन्दन घुलमिल अंग निखारे
अंजन रेखा आँख भरे
जूही चम्पा वेणी बाँधे
मोती माणक जड़ी-जड़ी
लौट आए उपहारों के दिन
साध पिटारी भरी-भरी
--
शशि पाधा
कनेक्टीकट (यू.एस.ए.)
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कार्यशाला : ०७
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बहुत हि सुन्दर रचना....शुभकामनाए!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
उड़-उड़ जाए पीत ओढ़नी
जवाब देंहटाएंपुरवाई के पँख लगे
सरसों के पग बँधे पैंजनी
गेहूँ सारी रात जगे
बौराई बंजारन कोयल
कुहुके गाए घड़ी-घड़ी
bahut achchha varnan hai
vakai jhoomti hui sarso ka roop pag bandhe panjani ke dwara sarthak hua hai
जै हो शशि जी !
जवाब देंहटाएंहर शब्द मे बसंत
हर भाव मे बसंत
बहुत ही सुंदर नवगीत ।
भई वाह
पूरी की पूरी रचना बहुत ही अच्छी लगी धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंविमल कुमार हेडा
बहुत सुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंऋतुराज छिटकाए सतरंग
धरा वासंती हरी- हरी
बौराई बंजारन कोयल
कुहुके गाए घड़ी-घड़ी
जूही चम्पा वेणी बाँधे
मोती माणक जड़ी-जड़ी
लौट आए उपहारों के दिन
साध पिटारी भरी-भरी
मन मे अटके हुए भावो को बेबाक अभिव्यक्ति देने की जादूगरी तो बस आप है.बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह......
जवाब देंहटाएंउड़-उड़ जाए पीत ओढ़नी
पुरवाई के पँख लगे
सरसों के पग बँधे पैंजनी
गेहूँ सारी रात जगे
बौराई बंजारन कोयल
कुहुके गाए घड़ी-घड़ी
चित्रमय संसार की रचना किये तुम जा रहे,
है मधुर ये कल्पना मधुमास को तुम गा रहे ।
अति-सुंदर....बधाई आपको शशि जी.....
गीता पंडित
खिला-खिला धरती का आनन
जवाब देंहटाएंदेहरी अँगना धूप धुले
महुआ- टेसू गंध बिखेरें
लहर-लहर अनुराग घुले
ओस कणों में हँसती किरणें
हीरक कणियाँ लड़ी-लड़ी
kitna sunder barnan hai chitr sa aankhon ke samne ubhar aaya hai .lagta hai me apne ganv pahunch gai hoon
bahut sunder
badhai
saader
rachana
मनुहारों के
जवाब देंहटाएंदिन आए हैं,
मधु नेह-भरी गगरी छलकी!
शशि ने भी
रंग बिखेर दिए,
है निशा सुरंजित हो झलकी!
उपहारों का
सुधि-हार लिए -
आया वसंत, छाया वसंत!
सबने मिलकर गाया वसंत!!
Bahut sundar!
जवाब देंहटाएंIla
नवगीत बेहद नाज़ुक नई कल्पनाओं से ओतप्रोत खूब सुहाया एक सुझाव है-
जवाब देंहटाएंलौट आये मनुहारों के दिन
नेह की गगरी झरी-झरी
ऋतुराज छिटकाए सतरंग
धरा वासंती हरी- हरी
इन पंक्तियों में ऋतुराज को ऋतूराज पढ़ना पड़ता है और दूसरी ओर सतरंग को सतरँग तब बहाव ठीक मालूम होता है। यदि इसे इस प्रकार बदलें- छिटकाए सतरंग राज ऋतु
धरा वासंती हरी- हरी
तो यह बेहतर लगेगा।
Bahut hee sundarata se racha gaya navageet.
जवाब देंहटाएंPoonam
बसंत का मनहर शब्द चित्रण. लय को पूरी तरह साध पाने से गीत की सरसता में वृद्धि हुई है. साधुवाद.
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