18 फ़रवरी 2010
५- आ गया वसंत :सिद्धेश्वर सिंह
शिशिर का हुआ नहीं अन्त
कह रही है तिथि कि आ गया वसन्त !
क्या पता कैलेन्डर को
सर्दी की मार क्या है।
कोहरा कुहासा और
चुभती बयार क्या है।
काटते हैं दिन एक एक गिन
याद नहीं कुछ भी कि तीज क्या त्यौहार क्या है।
वह तो एक कागज है निर्जीव निष्प्राण
हम जैसे प्राणियों के कष्ट हैं अनन्त।
माना कि व्योम में
हैं उड़ रहीं पतंगें।
और महाकुम्भ में
हो रहा हर गंगे।
फिर भी हर नगर हर ग्राम में
कम नहीं हुईं अब भी जाड़े की तरंगें।
बोलो ऋतुराज क्या करें हम आज
माँग रहे गर्माहट सब दिग - दिगन्त ।
माना इस समय को
जाना है जायेगा ही।
यह भी यकीन है
कि मधुमास आयेगा ही।
फिर भी अभी और दिन भी
जाड़े का जाड़ापन ही जी भर जलायेगा ही।
आओ ओस पोंछ दें शाही सवारी की
मठ से निकल पड़े हैं वसन्त बन महन्त।
--
सिद्धेश्वर सिंह
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कार्यशाला : ०७
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itne sundar shabdon main sach bayan kiya hai ki jitni taareef ki jaye kam hai.
जवाब देंहटाएंIla
आओ ओस पोंछ दें शाही सवारी की
जवाब देंहटाएंमठ से निकल पड़े हैं वसन्त बन महन्त।
nice
डॉ.सिद्धेश्वर जी का नवगीत सुन्दर है!
जवाब देंहटाएंबोलो ऋतुराज क्या करें हम आज
जवाब देंहटाएंमाँग रहे गर्माहट सब दिग-दिगन्त
वाह वाह क्या नवगीत है।अति सुन्दर भावों से सुसज्जित,
रचनाकार को बधाई
beshak aa gayaa vasant
जवाब देंहटाएंpyar chhakata anant
sudar prastuti
dhanyavad
सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
आओ ओस पोंछ दें शाही सवारी की
जवाब देंहटाएंमठ से निकल पड़े हैं वसन्त बन महन्त
kya baat hai kitni sunder line hai
aap ko bahut badhai ho
saader
rachana
सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआओ ओस पोंछ दें शाही सवारी की
जवाब देंहटाएंमठ से निकल पड़े हैं वसन्त बन महन्त।
सुन्दर !
सब कुछ होने के बावजूद यह नवगीत गीत के बहाव में नहीं आ सका। फिर भी एक अच्छे प्रयत्न के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंलीक से हटकर रचा गया गीत. सिक्के के दूसरे पहलू को उद्घाटित करता सा... अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंशिशिर देहरी पर खड़ा,
जवाब देंहटाएंजाने को अनमना
आते वसन्त को
करता है कुछ मना।
इन भावों को लेकर यह नवगीत मन को भाया ।
और वसन्त को महन्त बना कर शाही सवारी में लाना एक नवीन कल्पना है। धन्यवाद और शुभ कामनाएँ
शशि पाधा