21 फ़रवरी 2010

७- राग वसंत : ओमप्रकाश तिवारी


चेहरा पीला आटा गीला
मुँह लटकाए कंत,
कैसे भूखे पेट ही गोरी
गाए राग वसंत

मंदी का है दौर नौकरी
अंतिम साँस गिने,
जाने कब तक रहे हाथ में
कब बेबात छिने

सुबह दिखें खुश रूठ न जाएँ
शाम तलक श्रीमंत

चीनी साठ दाल है सत्तर
चावल चढ़ा बाँस के उप्पर
वोट माँगने सब आए थे
अब दिखता ना कोई पुछत्तर

चने हुए अब तो लोहे के
काम करें ना दंत

नेता, अफसर और बिचौले
यही तीन हैं सबसे तगड़े
इनसे बचा-खुचा खा जाते
भारत में भाषा के झगड़े

साठ बरस के लोकतंत्र का
चलो सहें सब दंड
--
ओमप्रकाश तिवारी

25 टिप्‍पणियां:

  1. नेता, अफसर और बिचौले
    यही तीन हैं सबसे तगड़े,
    इनसे बचा-खुचा खा जाते
    भारत में भाषा के झगड़े । nice

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  2. सुंदर नवगीत के लिए बधाई -

    नए रूप में
    रच दिया,
    सचमुच राग वसंत!
    सच्चाई की
    आ गया,
    लेकर आग वसंत!!

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  3. अच्छा नवगीत!
    साठ बरस के लोकतंत्र का
    चलो सहें सब दंड
    दंड की जगह कुछ और सोच लेते तो छंद का भी सुन्दर निर्वाह हो जाता।
    फिर भी बधाई!
    सादर

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  4. नेता, अफसर और बिचौले
    यही तीन हैं सबसे तगड़े
    इनसे बचा-खुचा खा जाते
    भारत में भाषा के झगड़े
    बहुत ही गहरे भाव लिये आप की यह कविता
    धन्यवाद

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  5. सुन्दर रचना!

    पीताम्बर परिवेश में,
    सजे हुए हैं सन्त!
    सबके नयनों में सजा,
    होली और बसन्त!!

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  6. नेता, अफसर और बिचौले
    यही तीन हैं सबसे तगड़े,
    इनसे बचा-खुचा खा जाते
    भारत में भाषा के झगड़े |

    सुंदर...

    बधाई |!

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  7. अब जाकर आया इस कार्यशाला का पहला शुद्ध नवगीत। गीत को जीवन से तो जोड़ा ही गया है, लोक से लिए गए शब्दों का सुंदर प्रयोग किया गया हैं, उदाहरण के लिए- उप्पर, पुछत्तर। मुहावरों का भी बेहद आकर्षक प्रयोग है- मुँह लटकाए, भूखे पेट, अंतिम साँसें गिनना, लोहे के चने आदि। बहुत बढ़िया।

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  8. चीनी साठ दाल है सत्तर
    चावल चढ़ा बाँस के उप्पर
    वोट माँगने सब आए थे
    अब दिखता ना कोई पुछत्तर
    चने हुए अब तो लोहे के
    काम करें ना दंत

    महंगाई पर सुन्दर कटाक्ष, बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
    विमल कुमार हेडा

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  9. "rag basant ke bahane" yatharth ke trane is navgeet ki visheshta hai

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  10. नेता, अफसर और बिचौले
    यही तीन हैं सबसे तगड़े
    इनसे बचा-खुचा खा जाते
    भारत में भाषा के झगड़े
    sahi bahut sahi kaha hai aap ne
    badhai
    rachana

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  11. लौकिक,सामाजिक तथा राजनैतिक यथार्थ को वासंती रँगों में रँग कर अत्यन्त मोहक ढंग से प्रस्तुत किया है आपने। धन्यवाद और बधाई ।
    शशि पाधा

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  12. मंदी का है दौर नौकरी
    अंतिम साँस गिने,
    जाने कब तक रहे हाथ में
    कब बेबात छिने

    सुबह दिखें खुश रूठ न जाएँ
    शाम तलक श्रीमंत

    वाह...वाह... वैश्विक मंदी की अभिनव पृष्ठभूमि ने नवगीत को असमृद्ध किया है साधुवाद..

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