आए हैं,
पाहुन वसंत के
बगिया महकी है
बौराए हैं आम कुंज में कोयल कुहकी है।
बातों ही बातों में तुमने-
पृष्ठ पलट डाले
खुले चित्र-वातायन कितने
विविध रंग वाले
जिनमें हमने कभी लिखी थीं-
शहदीली रातें
कचनारों से पंख खोलकर
उड़ने की बातें
यादों के अंगार डाल टेसू भी दहकी है।
फूले सुर्ख सेमली दिन थे
महुआ भुनसारे
ऋतुपर्णा के अंग-अंग,
छवि-निखरे अनियारे
सरसों लाती मदनोत्सव के
जब पीले चावल
हो उठती वाचाल चूड़ियाँ
उद्दीपित पायल
कागा आया,
फिर मुंडेर पर चिड़िया चहकी है।
अंग-अंग निचुड़े रंगों से,
रस-धारों के दिन
उलझन-रीझ-खीझ-तकरारें
मनुहारों के दिन
अब कगार के वृक्ष
और ये-
लहरें मदमाती
टाँग खींचने दौड़ पड़ी है
नदिया उफनाती
दिन, हिरना हो गए निठुर पुरवैया बहकी है।
--
यतीन्द्रनाथ राही
बहुत ही उम्दा रचना लगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंइस गीत की जितनी भी तारीफ की जाये
जवाब देंहटाएंकम ही होगी!
बहुत सुन्दर!
वाह....वाह......
जवाब देंहटाएंनमन स्वीकार करें..
बधाई....आपको
गीता पंडित
बहुत सुन्दर रचना! नवगीत की सीमा को स्पर्श करती हुई।
जवाब देंहटाएंअब कगार के वृक्ष
और ये-
लहरें मदमाती
टाँग खींचने दौड़ पड़ी है
नदिया उफनाती
दिन, हिरना हो गए निठुर पुरवैया बहकी है।
अच्छा है! लेकिन यह चित्र वसन्त का न होकर वर्षा ऋतु का बन रहा है मेरी समझ से।
सादर
"आए हैं,
जवाब देंहटाएंपाहुन वसंत के
बगिया महकी है ... ... ."
--
इतनी अच्छी शुरूआत के बाद
सब कुछ अच्छा ही अच्छा!
पढ़ता ही चला गया,
आनंद की नदिया में बहता चला गया!
--
इतने अच्छे नवगीत का तो
अंत ही नहीं होना चाहिए!
"बातों ही बातों में तुमने-
जवाब देंहटाएंपृष्ठ पलट डाले
खुले चित्र-वातायन कितने
विविध रंग वाले
जिनमें हमने कभी लिखी थीं-
शहदीली रातें
कचनारों से पंख खोलकर
उड़ने की बातें
यादों के अंगार डाल टेसू भी दहकी है " यह पँक्तियाँ बहुत मनभायीं ।
वसन्त के आगमन को चित्रित करता एक सरस एवं मधुर नवगीत है आपका। धन्यवाद ।
शशि पाधा
सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
विमल कुमार हेडा
"aaen hai pahun vasant ke "beshak manmeet ko rijhata hua ek ati sunder navgeet
जवाब देंहटाएंसरस एवं मधुर रचना .
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