25 फ़रवरी 2010

११- आए हैं पाहुन वसंत के : यतीन्द्रनाथ राही

आए हैं,
पाहुन वसंत के
बगिया महकी है
बौराए हैं आम कुंज में कोयल कुहकी है।
बातों ही बातों में तुमने-
पृष्ठ पलट डाले
खुले चित्र-वातायन कितने
विविध रंग वाले
जिनमें हमने कभी लिखी थीं-
शहदीली रातें
कचनारों से पंख खोलकर
उड़ने की बातें
यादों के अंगार डाल टेसू भी दहकी है।

फूले सुर्ख सेमली दिन थे
महुआ भुनसारे
ऋतुपर्णा के अंग-अंग,
छवि-निखरे अनियारे
सरसों लाती मदनोत्सव के
जब पीले चावल
हो उठती वाचाल चूड़ियाँ
उद्दीपित पायल
कागा आया,
फिर मुंडेर पर चिड़िया चहकी है।

अंग-अंग निचुड़े रंगों से,
रस-धारों के दिन
उलझन-रीझ-खीझ-तकरारें
मनुहारों के दिन
अब कगार के वृक्ष
और ये-
लहरें मदमाती
टाँग खींचने दौड़ पड़ी है
नदिया उफनाती
दिन, हिरना हो गए निठुर पुरवैया बहकी है।
--
यतीन्द्रनाथ राही

10 टिप्‍पणियां:

  1. इस गीत की जितनी भी तारीफ की जाये
    कम ही होगी!
    बहुत सुन्दर!

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  2. वाह....वाह......

    नमन स्वीकार करें..



    बधाई....आपको

    गीता पंडित

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  3. बहुत सुन्दर रचना! नवगीत की सीमा को स्पर्श करती हुई।
    अब कगार के वृक्ष
    और ये-
    लहरें मदमाती
    टाँग खींचने दौड़ पड़ी है
    नदिया उफनाती
    दिन, हिरना हो गए निठुर पुरवैया बहकी है।
    अच्छा है! लेकिन यह चित्र वसन्त का न होकर वर्षा ऋतु का बन रहा है मेरी समझ से।
    सादर

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  4. "आए हैं,
    पाहुन वसंत के
    बगिया महकी है ... ... ."
    --
    इतनी अच्छी शुरूआत के बाद
    सब कुछ अच्छा ही अच्छा!
    पढ़ता ही चला गया,
    आनंद की नदिया में बहता चला गया!
    --
    इतने अच्छे नवगीत का तो
    अंत ही नहीं होना चाहिए!

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  5. "बातों ही बातों में तुमने-
    पृष्ठ पलट डाले
    खुले चित्र-वातायन कितने
    विविध रंग वाले
    जिनमें हमने कभी लिखी थीं-
    शहदीली रातें
    कचनारों से पंख खोलकर
    उड़ने की बातें
    यादों के अंगार डाल टेसू भी दहकी है " यह पँक्तियाँ बहुत मनभायीं ।
    वसन्त के आगमन को चित्रित करता एक सरस एवं मधुर नवगीत है आपका। धन्यवाद ।
    शशि पाधा

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  6. सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
    धन्यवाद
    विमल कुमार हेडा

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  7. "aaen hai pahun vasant ke "beshak manmeet ko rijhata hua ek ati sunder navgeet

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