1 मार्च 2010

१५- नाच उठा मन : प्रवीण पंडित

नाच उठा मन बाँध पैंजनी
ठुमक थिरक हुलसाया
काँधों पर फागुन को लादे
लो, बसंत आया

अधरों पर चुम्बन सा
आकर बैठा मधुरिम हास
बाँहें फैला कर उन्मादी
हठी हुआ उल्लास
मन के गली-गलिहारों को
बासंती रंगवाया

कलियों को अंगराग लगाता
गात गात में गंध
मन ही मन हुलसाता
तोड़े हौले हौले बंध
सूनी रेतीली वीथि में
फिर उमंग छाया

मन के मदिर मंजीरे
बोले मीठे मीठे बोल
नयनकोण में भाव रेशमी
करने लगे किलोल
तोड़े सारे फंद कहाँ
यह मन-तुरंग धाया

काँधों पर फागुन को लादे
लो ,बसंत आया

--
प्रवीण पंडित

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपको तथा आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ.nice

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  2. मन के मदिर मंजीरे
    बोले मीठे मीठे बोल
    नयनकोण में भाव रेशमी
    करने लगे किलोल
    तोड़े सारे फंद कहाँ
    यह मन-तुरंग धाया

    काँधों पर फागुन को लादे
    लो ,बसंत आया
    वाह वाह। अति सुन्दर।

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  3. सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
    धन्यवाद
    विमल कुमार हेडा

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  4. मन के मदिर मंजीरे
    बोले मीठे मीठे बोल
    नयनकोण में भाव रेशमी
    करने लगे किलोल
    तोड़े सारे फंद कहाँ
    यह मन-तुरंग धाया
    man prano ko taranit karat ek ati sunder navgeet
    badhaeeho

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  5. तोड़े सारे फंद कहाँ
    यह मन-तुरंग धाया

    वाह...वाह... मजा आ गया. रम्य रचना.

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  6. नाच उठा मन बाँध पैंजनी,
    मधु वसंत के साथ,
    सुनाए गीत फागुनी,
    गीत की मधुर रागिनी!

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  7. काँधों पर फागुन को लादे
    लो ,बसंत आया
    v.nice.

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  8. (ऋतुराज के पुष्प
    धनुष की)
    'प्रत्यंचा टूट गई
    छूट गए फूलों के वाण'

    बढ़िया है.

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  9. "नयनकोण में भाव रेशमी
    करने लगे किलोल
    तोड़े सारे फंद कहाँ
    यह मन-तुरंग धाया

    काँधों पर फागुन को लादे
    लो ,बसंत आया "
    प्रवीण जी,बहुत ही सुन्दर कल्पना है। बधाई इतने सुन्दर गीत के लिये ।

    शशि पाधा

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  10. मन के मदिर मंजीरे
    बोले मीठे मीठे बोल
    नयनकोण में भाव रेशमी
    करने लगे किलोल
    तोड़े सारे फंद कहाँ
    यह मन-तुरंग धाया

    काँधों पर फागुन को लादे
    लो ,बसंत आया




    सुंदर रचना के लियें
    आपको बधाई...

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