अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,
बसंत आ गया!
दूर खेत मुसकरा रहे हरे-हरे,
डोलती बयार नव-सुगंध को धरे,
गा रहे विहग नवीन भावना भरे,
प्राण! आज तो विशुद्ध भाव प्यार का
हृदय समा गया!
अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,
बसंत आ गया!
खिल गया अनेक फूल-पात से चमन,
झूम-झूम मौन गीत गा रहा गगन,
यह लजा रही उषा कि पर्व है मिलन,
आ गया समय बहार का, विहार का
नया नया नया!
अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,
बसंत आ गया!
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महेन्द्र भटनागर
दूर खेत मुसकरा रहे हरे-हरे,
जवाब देंहटाएंडोलती बयार नव-सुगंध को धरे,
गा रहे विहग नवीन भावना भरे,
प्राण! आज तो विशुद्ध भाव प्यार का
हृदय समा गया!
bahut sundar likha hai. badhayi.
nice
जवाब देंहटाएंअलंकारों का कोष है यह नवगीत. भाषिक सौंदर्य और सम्यक बिम्बों को आत्मसात करती हर पंक्ति मन को छू जाती है साधुवाद. नवगीत के निकष पर ठेठ आंचलिक शब्द न होने पर भी यह रचना गीत और नवगीत की सीमारेखा पर है. मुझ जैसे विद्यार्थी के लिए आप जैसे सिद्धहस्त वरिष्ठ का यह कृपा प्रसाद एक पथ की तरह है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंखिल गया अनेक फूल-पात से चमन,
जवाब देंहटाएंझूम-झूम मौन गीत गा रहा गगन,
यह लजा रही उषा कि पर्व है मिलन,
आ गया समय बहार का, विहार का
नया नया नया!
अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,
बसंत आ गया!
ang ang me umang piya sach vasant a gaya
यह गीत रचा मधु से मधुरिम,
जवाब देंहटाएंजो मेरे मन को भाया है!
यह मान लिया यह मिलन पर्व,
यह मुझसे मिलने आया है!
तुम गीत सजाकर चले गए,
यह मिलन सजाने आया है!
यह मौन-मौन रहकर मुझसे,
मधु मौन सुनाने आया है!
यह मेरे मन को भाया है!
यह मेरे मन को भाया है!
सुन्दर गीत के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंसंजीवजी ने जो व्याकरण उपयोग का बखान किया है वह बिलकुल सही है -
हरे-हरे,
नया नया नया!
और अन्य तुकबंदी |
अवनीश तिवारी |
एक मधुर एवं सरस नवगीत के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं"गा रहे विहग नवीन भावना भरे,
प्राण! आज तो विशुद्ध भाव प्यार का
हृदय समा गया!" तथा
" यह लजा रही उषा कि पर्व है मिलन,
आ गया समय बहार का, विहार का
नया नया नया!" इन पँक्त्तियों का भावसौन्दर्य अति सुन्दर है।
सादर,
शशि पाधा